लेखनी कविता -15-Apr-2023
शीर्षक : श्याम रंग
जीवन नैया ही उसकी डोल गई,
जीवन मांझी हुआ है जो ओझल।
हर रस अब तो नीरस से होते हैं ,
श्वेत श्याम रंग ज्यों घेरे हैं हरपल।
बीच मझधार वो हाथ छुड़ाकर ,
पतवार चुनौतियों की थमा गया।
अश्कों के दिन रात बहते दरिया में,
तन मन सारा अब तो भीग गया।
खुशियों से हर दिन चहकता था,
घर-आंगन गुमसुम सा रूठ गया।
साहिल ओझल सा लगे इन दिनों,
हताशा के भंवर में मन है डूब गया।
सही राह दिखाना कर्तव्य पथ पर,
हमसफ़र का साथ तो है छूट गया।
ही तुम थाम लेना सांवरे हाथ अब,
जीने का उसका हौसला टूट गया।
© उषा शर्मा
अदिति झा
16-Apr-2023 08:23 AM
Nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
16-Apr-2023 07:22 AM
सुन्दर सृजन
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ऋषभ दिव्येन्द्र
15-Apr-2023 10:58 PM
बहुत सुन्दर
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