Usha sharma

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -16-Apr-2023

आज की प्रतियोगिता 

विषय :स्वैच्छिक
शीर्षक :बचपना

बहुत सुनहरे दिन थे मेरे, बचपन के वो प्यार भरे, 
बड़ी नहीं थी हसरतें कोई, छोटी खुशियों से सँवरे।

बनाते काग़ज़ की कश्ती, बहते पानी में जो ठहरे, 
हिचकौले लेते देख मन में,उठती उमंगों भरी लहरें।

ना रही वो कश्ती,लुभावने तकनीकी खेल रहते घेरे 
मासूमियत की बातों पर,समझदारी के लगे हैं पहरे। 

भूले हैं नादानी शरारतें, दिखते प्रतिस्पर्धाओं के फेरे, 
अल्हड़पन की उम्र में, लगते हैं क्यों अवसाद के घेरे। 

बहना चाहें बारिश संग,रहते मगर किनारों पर ठहरे, 
अंधेरे में डूबा भविष्य, जो झूठे फरेबी मिले हैं चेहरे। 

बचपना चाहे पंख स्वछंद, आसमां में उड़ान वो भरे, 
माता-पिता  गर्व करें, उत्तम  मार्गदर्शन जो सदा रहे।

© उषा शर्मा 

   19
5 Comments

Punam verma

17-Apr-2023 09:16 AM

Very nice

Reply

बहुत ही सुंदर सृजन

Reply

अदिति झा

16-Apr-2023 05:00 PM

Nice 👍🏼

Reply