प्रेम-दीप
प्रेम-दीप
*गीत*16/16
प्रेम-दीप से विश्व प्रकाशित,
पर लगता हमको अँधियारा।
दूर गए हो साजन तब से-
मन है बहुत उदास हमारा।।
दिन तो कट जाते हैं लेकिन,
कभी नहीं रजनी कटती है।
विरह-वेदना बनकर नागिन,
प्रति-पल हमको तो डसती है।
आ जाओ अति शीघ्र बालमा-
जीवन-रक्षक,तुम्हीं सहारा।।
मन है बहुत उदास हमारा।।
तुम थे तो ये चाँद-सितारे,
लगते थे अति प्यारे-प्यारे।
रहे सुरमयी साँझ-सवेरे,
पुष्प-सुगंधित नदी-किनारे।
यदि सँग में रहते हैं प्रियतम-
नहीं बहकता मन बंजारा।।
मन है बहुत उदास हमारा।।
दिल को ढाढ़स बहुत बधाऊँ,
पर दिल विचलित हो जाता है।
मन भी आख़िर मन ही होता,
नहीं संतुलित हो पाता है।
इसे निकालो भवँर-जाल से-
जीवन-नैया-खेवनहारा।।
मन है बहुत उदास हमारा।।
प्रीति-रीति अनमोल जगत में,
बड़े भाग्य यह अवसर मिलता।
निभा इसे दायित्व पूर्ण हो,
मानव-जीवन सुखमय रहता।
आओ करें मिलन पुनि हम-तुम-
जग में बहे प्रेम की धारा।।
मन है बहुत उदास हमारा।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
ऋषभ दिव्येन्द्र
19-Apr-2023 12:36 PM
सुंदर गीत
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