रक्षक (भाग : 19)
रक्षक भाग : 19
पंचभूत द्वारा नीले पत्थर को ऊपर उठाने के बाद उसमें सभी सर्पितृलों के अवशेष एवं ताकते जुड़ गई, जिससे पंचभूत अब महाशक्तिशाली महाभूत बन गया था। आज से पहले पंचभूत को ऐसा करने की कभी आवश्यकता नही हुई थी, परन्तु आज वो नीला पत्थर उसके शरीर से बाहर आकर सक्रिय हो चुका था, अब महाभूत को रोकना रक्षक और उसके साथियों के लिए नामुमकिन हो रहा था।
रक्षक और उजाले के बाकी के प्रतिनिधि योद्धा खुद को संभालने की कोशिश कर रहे थे।
"बस इतनी सी ही ताक़त है उजाले के पास?" - तमसा अठ्ठाहस करते हुए उन्हें नीचा दिखाने के लिए बोली।
"मैं तब भी वही कहा था, अब भी वही कहूंगा, अँधेरा कितना भी घना हो उजाले की एक किरण उसे चीर जाती है, अँधेरा कितना भी ताक़तवर हो जीत हमेशा उजाले की ही होती है।" - रक्षक बोला।
"और अगर ये ब्रह्मांड की सबसे बड़ी महाशक्ति है तो हम भी हाथ मे चूड़ियां पहने हुए नही है, हार या जीत तो समय तय करेगा लेकिन युद्ध हम करेंगे अपने आखिरी दम तक!" - अंश उठते हुए बोला उसका घाव अब भर चुका था।
"तुम व्यर्थ की बातों में समय न गवाओ तुच्छ मच्छरों! महाभूत को तुम्हारी जान चाहिए, ये युद्ध अब मेरा युद्ध है!" - महाभूत गरजते हुए बादल के समान बोला।
अर्थ के नेतृत्व में उसके हज़ारो सैनिक अपने हथियारों के साथ महाभूत की तरफ बढ़े, जय ने उन्हें रोकने की कोशिश किया पर आखिर वो सब भी तो योद्धा ही थे, अर्थ अपनी सेना का कुशलता से नेतृत्व करते हुए महाभूत को जीवित धातु के रस्सियों से कसकर पकड़ लेता है, इन रस्सियों में हज़ारो वोल्टेज की बिजलियां दौड़ रही थी, महाभूत तनिक लड़खड़ाया, फिर थोड़ी कोशिश कर अपने दोनों हाथों को पास लाकर ताली बजाया, इस ताली के नाद की आवृत्ति इतनी अधिक थी कि रस्सियां टूटने लगी, सभी सैनिक उछलकर दूर जा गिरे।
4J ने अपने हथियारों को संयुक्त कर एक नया हथियार बनाया जो चक्र की तरह था पर उसमे तलवार भी जुड़ी थी। वे अपनी मानसिक ऊर्जा द्वारा उसे संचालित करने लगे। महाभूत उस विशेष चक्र अस्त्र को, जिसमे तलवार भी जुडी हुई थी, अपने हाथ से पकड़कर तोड़ देता है, उसके शरीर पर उगे कांटे आकार में और बड़े होने लगते हैं, अस्त्र के टूटने के साथ 4J पर इसका मानसिक आघात होता है, जिससे वो धरती पर गिर जाते हैं।
यूनिक फिर महाभूत से लड़ने के लिए तैयार होता है, अपने दोनों हाथों से महीन रस्सियों को छोड़ता है जो जाकर। महाभूत के शरीर में उगे काँटो से लिपट रहा था, महाभूत आगे बढ़ा और यूनिक का हाथ पकड़कर उसे अपने शरीर से सटा लिया, यूनिक का धातुई सीना भी काँटो से भर गया यूनिक यह वार बर्दाश्त नही कर सका वह वहीं जमीन पर गिर गया, उसके ऊपर भी महाभूत के जहर का असर होने लगा था।
अंश, जयंत, स्कन्ध और रक्षक भी अपने हथियार लिए तैयार हो चुके थे, तमसा दूर खड़ी यह देखकर बहुत खुश हो रही थी। आज वह न केवल रक्षक को बल्कि उजाले के हर एक सैनिक को हारते हुए देख रही थी।
अंश अपनी तलवार को हवा में उछालते हुए उसपर बिजलियों का आह्वाहन करता है, बिजलियां अंश के तलवार पर गिरती हैं और अंश उस तलवार को अपने हाथ में लेकर महाभूत के शरीर पर उगे काँटो को काट डालता है, महाभूत उसे पकड़ने की कोशिश करता है पर अंश अपनी फुर्ती से तेज़ी के साथ उससे बचते हुए उसके शरीर पर उगे कांटो को काट रहा होता है। बचते बचाते आखिरकार एक थप्पड़ अंश को लग ही जाता है जिससे वो दूर जा गिरता है।
जयंत अपने दोनों हाथों में विशेष बंदूके लेकर आगे बढ़ता है, उसकी बंदूको का आकार प्रतिपल बढ़ता जाता है, जयंत अपने दोनों हाथों में बंदूक लेकर महाभूत पर गोलियां दागने लगा, यह गोलियां विषरोधक होती हैं पर इससे महाभूत पर कोई खास असर नही हुआ, स्कन्ध भी जयंत की मदद करने आ जाता है, अपनी चैन को फ़टकारते हुए वो महाभूत के एक हाथ को बांध देता है, दूसरे हाथ से वो भी गोलियों की बौछार कर देता है पर इससे कोई खास फायदा नज़र नही आ रहा था।
"आखिर ये महाभूत है क्या चीज, कुछ भी इसपर प्रभाव क्यों नही डाल रहे!" - स्कन्ध, जयंत से बोला।
"मुझे क्या पता, ये मुझे बताता थोड़े है!" - जयंत झल्लाकर बोला।
"तुम बच्चे महाभूत से लड़ने आये हो, यहां से सिर्फ तुम्हारा मृत शरीर जाएगा और कुछ भी नही!" - महाभूत दहाड़ते हुए बोला।
महाभूत जोर से फूंक मारकर जयंत को दूर उछाल देता है, स्कन्ध उसे पकड़ने के लिए उसकी ओर बढ़ता है, महाभूत यह देखकर मुस्कुराता है, जैसे वह यही चाह रहा हो, महाभूत अपने दोनों हाथों को सटाकर नीले रंग की ऊर्जा से जयंत और स्कन्ध वार करता है, जिससे जयंत और स्कन्ध दूर जा गिरते हैं।
"तुम यह युद्ध कभी नही जीत सकते, यह युद्ध सिर्फ मेरा है, और इसका विजेता भी सिर्फ मैं" - महाभूत अट्टहास करता हुआ बोला।
"युद्ध के नतीजे तुम मत बताओ महाभूत! इसका निर्णय तो समय करेगा।" - संयुक्त अपने दोनों हाथ फैलाकर अपने चारों तरफ की मिट्टी उठाकर एक नुकीला अस्त्र बनाकर महाभूत की ओर तीव्र गति से फेंकता है।
महाभूत उस मिट्टी के नुकीले अस्त्र को घुसा मारकर तोड़ देता है, संयुक्त यह देखकर हैरान हो जाता है, वह अपने दोनों हाथों को जोड़कर ऊपर उठाता है और अपने बाएं पैर से धरती पर एक गोल निशान बनाता है, महाभूत के पीछे की जमीन खिसक गयी जिससे वहां खड्ड बना गया। संयुक्त तीव्र गति के साथ अपने शरीर पर मिट्टी का ठोस कवच बनाकर टक्कर मारता है, महाभूत टस से मस नही होता, पर संयुक्त उसके शरीर पर चढ़ता हुआ दूसरी पार चला जाता है, संयुक्त के पीछे मिट्टी ठोस होकर एक बड़े गेंद का आकार ले चुकी थी, जिसपर महाभूत ने ध्यान नही दिया, उस बड़े ठोस के जोरदार टकराव से महाभूत अपने पीछे बने खड्ड में गिर जाता है और वो ठोस वहां बिछकर जमीन को पुनः समतल बना देता है, सभी एक पल के लिए चैन की सांस लेते हैं, तमसा अपनी महान शक्तियों का आह्वान करने लगती है।
पर कभी भी किसी की तरफ से जरा सी चूक उसकी हार का कारण बन जाती है, महाभूत जमीन के भीतर सुरंग खोद संयुक्त और बाकी सब को बेबस कर देता है।
रक्षक अब समझ चुका था कि अब उसे रोकने के लिए शायद सबको जान देनी पड़ जाएगी, महाभूत रक्षक जैसे सैकड़ो को एक साथ संभालने का दम रखता था। रक्षक यह सब सोचकर डरा नही मुस्कुराया, तमसा उसको हँसते देखकर परेशान हो गयी, पर महाभूत पर भूत सवार था वो रक्षक को चींटी की तरह मसल कर रख देना चाहता था, रक्षक भी उससे जरा भी नही डर रहा था, उसका क्रोध धीरे धीरे बढ़ रहा था, उसकी आँखे लाल होती जा रही थी, दोनो हाथ दहकते अंगारे बन चुके थे, वो तेजी से महाभूत की ओर बढ़ा, महाभूत भी अब उसके करीब आ चुका था।
"मैं बार बार नही बोलूंगा बच्चे, पर तुझ जैसे किसी छोटे बच्चे को उजाले के केंद्र का रक्षक बनाया किसने?" - महाभूत जबड़ा कसते हुए झुककर दोनों हाथ बांधकर रक्षक पर वार किया।
"ये मुझे खुद भी नही पता महाभूत, पर बाजी तुम्हारे हाथ मे है इसका मतलब ये नही कि तुम जीत जाओगे, जीत उजाले की ही होगी।" - रक्षक एक ओर कूदकर बचते हुए बोला।
"हर बार क्या यही घिसी पिटी बात बोलते हो बच्चे, तुम्हारी शक्तियां हमारे सामने तुच्छ हैं।" - महाभूत अपने पैर से रक्षक को कुचलने के प्रयास करते हुए बोला।
"याद करो महाभूत, इसी तुच्छ जीव ने तुम्हे तुम्हारे सबसे शक्तिशाली रूप को धारण करने पर मजबूर किया है।" महाभूत से बचते हुए रक्षक उसके पैर पर बी रेज़ मारते हुए बोला।
"तुम हमें क्रोधित कर रहे हो बच्चे!" - महाभूत ने अपने दोनों हाथों को मिलाकर रक्षक को मसलने की कोशिश की।
"तो मैं क्या तुमसे भीख मांगने आया हूँ।" - बचते हुए रक्षक क्रोधित स्वर में बोला।
महाभूत ने अपने हाथ को ऊपर उठाया, उसका हाथ अचानक से बड़ा होने लगा, रक्षक अभी यह सब समझ ही नही पाया था कि उसने उसी हाथ से रक्षक के मुँह पर दे मारा, रक्षक दूर जा गिरा, महाभूत बाकियों को धकियाते हुए उसके पास जा पहुंचा और लगातार घुसे बरसाना शुरू कर दिया।
बाकी सब यह देखकर भी कुछ नही कर पा रहे थे, सब कई दिनों से लगातार युद्ध करके थक चुके थे, पर संयुक्त यह सब नही देख सकता था, रक्षक की फटी पोशाक और बुरी तरह फट गई, उसके चेहरे पर लगा नकाब जो आज तक नही खुला था, बुरी तरह चिथड़े चिथड़े हो गया।
महाभूत रक्षक के चेहरे पर लगातार वार कर रहा था, रक्षक का पूरा शरीर लहू से रंग गया, उसके लहू का लाल रंग धरती को लाल कर रहा था वो आज महाभूत के हाथों बुरी तरह बेबस था।
संयुक्त महाभूत की तरफ तेज़ी से दौड़ा, उसने अपनी पूरी रफ्तार को कुछ ही पल में प्राप्त कर लिया जिसके बाद वो हवाओ को भी दिखना बन्द हो गया, महाभूत के शरीर पर काली आग जल रही थी, उसके हाथों में रक्षक का शरीर था।
संयुक्त अपनी पूर्ण गति से महाभूत से हाथो पर प्रहार करने लगा, जिससे रक्षक उसके हाथ से छूट गया, पर अब रक्षक के पोशाक के साथ उसका मास्क भी फट चुका था, संयुक्त भी महाभूत को बस कुछ पलों के लिए ही चकमा दे पाने में सफल रहा, जल्दी ही महाभूत ने उसकी सही स्थिति को भाँपकर उसे पकड़ लिया, अब वो अपने दोनों हाथों से रक्षक और संयुक्त को लगातार मारे जा रहा था, कुछ पल पहले जो संयुक्त प्रकाश की गति को भी मात दे सकता था अब वहां से हिल भी नही पा रहा था। संयुक्त के चेहरे पर चढ़ा ग्लासेस मास्क फट गया जिससे उसका चेहरा साफ दिखने लगा, यह देखकर पंचभूत थोड़ा हैरान हुआ, पर तमसा के चेहरे और हवाइयां उड़ने लगी, जीत तय होने के बाद भी उसके माथे से पसीना छूटने लगा, पंचभूत ने उसे बस देखा ज्यादा गौर नही किया।
"तुमसे पहले ही कहा था मैंने, कोई भी मुझसे नही जीत सकता।" - कहते हुए उसने अपना नीला पत्थर फिर अपने हाथ मे प्रकट किया जो बाहर आते ही सक्रिय हो गया, और उसे उछालने लगा।
उसकी तेज़ चमक से पूरा युद्धक्षेत्र प्रकाशमान हो गया। फिर वो पत्थर पंचभूत ने अपने सीने में बने चक्र में लगा लिया जहाँ से वह फिर गायब हो गया।
रक्षक ने यह देख लिया, उसके नाक से और छाती से लगातार रक्त स्त्राव हो रहा था, उसने अपने हाथ से अपना लहू पोंछकर ध्यान लगाया, अगले ही पल उसकी दिव्य तलवार उसके रीढ़ की हड्डियों से निकलकर बाहर आ गयी, इसके चमक से महाभूत की आँखे कुछ पल के लिए चौंधिया गयी और इतना ही वक़्त काफी था रक्षक को खुद को सिद्ध करने का।
वह उड़कर हवा में खड़ा हो गया और अपनी समस्त शक्तियों को दिव्य तलवार में समाहित कर महाभूत को दो टुकड़ों में काट डाला, महाभूत के दोनों टुकड़े अलग अलग दिशा में गिर गए, रक्षक और उसके साथी यह देखकर थोडी राहत की साँस लिए, तमसा को अब भी विश्वास नही हो रहा था एक अमर अपराजेय योद्धा धरती पर दो टुकड़ों में पड़ा हुआ है।
रक्षक की तलवार उसके हाथों से अपने आप गायब हो गयी, वह अभी मुड़ा ही था कि उसने एक दहाड़ सुनी, महाभूत का शरीर फिर से जुड़ने लगा था, थोड़ी ही देर में वह वहां सही सलामत खड़ा था।
"जिसके पास साक्षात 'मृत्यु पत्थर' हो, उसे मौत छू भी नही सकती रक्षक!" - वह जोर जोर से दहाड़ते हुए बोला।
रक्षक और बाकी सब सोच में पड़ गए कि आखिर इस मुसीबत को कैसे निपटाए, कोई भी इसके सामने टिक नही रहा और यह है कि मरने का नाम नही लेता।
"यही वक़्त है संयुक्त होने का, सम्पूर्ण रक्षक बनने के लिए अपनी शक्तियों को ध्यान लगाकर संयुक्त हो जाओ रक्षक!" - जय जोर जोर से बोला।
"तुम अकेले ही नही, बाकी सब भी रक्षक ही हैं। यही समय है तुम्हारे एक होने का।" - जैक बोला।
सब हैरान थे, तमसा की परेशानी और बढ़ गयी, सब ने मास्क हटा दिया, पांचों के चेहरे और शरीर का आकार एक ही जैसे थे।
"मैंने तुमसे कहा था न कि हम एक हैं।" - जयंत ने स्कन्ध से मुस्कुराते हुए कहा।
"हाँ! अब समय है सच मे एक होने का, अंधेरे को जड़ से मिटाने का।" - स्कन्ध अपने होंठों से रक्त पोंछता हुआ मुस्कुराकर बोला।
सब ध्यान लगाने लगे, रोशनी का एक तेज़ झमाका हुआ और फिर कुछ भी दिखना बन्द हो गया।
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धरती पर…
"क्या हुआ" - राज ने उस आवाज से पूछा।
"हमे संयुक्त होना है।" - उस आवाज ने जवाब दिया।
"पर मैं तो मात्र 1 प्रतिशत ही हूँ, मुझसे कितनी ताक़त मिलेगी?" - राज बोला।
"तुम भी हमारे अंश को कर्म! तुम अपने एक अंश को हमसे संयुक्त होने के लिए भेजो, और यहां धरती पर राज का होना भी अत्यंत आवश्यक है मुझे नही लगता कुछ अच्छा होने वाला है।" - वह आवाज बोली।
"ठीक है, राज को केवल राज बने रहने देते हैं, अब से उसके पास कोई याद नही वह केवल एक साधारण मानव है।" राज अपनी शक्तियों को आवाज की दिशा में प्रवाहित कर बोला।
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अंधेरे के बेटे के पास
तमसा जोर जोर से चीख रही थी।
"तुम्हे सब पता था न! तुमने मुझे बताया क्यों नही?" - तमसा, तमस से गुस्से में बोली।
"तुम अभी कुछ नही जानती हमारी छोटी बहन! हज़ारो सदियों से हम यही तैयारी कर रहे हैं, पर उजाले का केंद्र पहली बार किसी ग्रह पर इतना समय तक रह पाया है।" - तमस तमसा से प्यार से बोला।
तमसा हैरान होकर बस तमस को देख रही थी जो धुंए के साथ घुल मिलकर वहां से गायब हो गया।
क्रमशः ……..
Hayati ansari
29-Nov-2021 09:57 AM
nice
Reply
Niraj Pandey
08-Oct-2021 04:30 PM
बहुत ही रोचक भाग है👌
Reply
मनोज कुमार "MJ"
11-Oct-2021 07:03 AM
Thanks
Reply
Shalini Sharma
01-Oct-2021 01:51 PM
Nice
Reply
मनोज कुमार "MJ"
11-Oct-2021 07:03 AM
Thank you
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