चाहूँ तो बहुत मैं भी यूँ जाना पीहर सखियों
यादें कुछ बचपन की ताजा करना चाहूँ सखियों।
मिर्च हल्दी, धनिया साल भर के देखो भर दिए,
चना जौ चावल गेहूँ साफ कर रख दिए सखियों।
माँ की यादों में खोयी खोई ढूँढू जब घर भर में
केर आम गूंदे आचार की खुश्बू में पाऊं सखियों।
गरम गरम खाने को, ठंडा ठंडा शरबत पीने को,
माँ के खाने, पापा के दुलार को अब तरसूं सखियों ।
भाई से बात करने अपनी ही मनमानी करने को,
फिर से कुछ पल बचपन मैं जीना चाहूँ सखियों।
माँ पापा के संग बसी कितनी यादें महकती वहाँ,
किसी बचपन की सखी से भी मिल पाऊं सखियों।
ननद आने वाली हैं पीहर,भाभी जाने वाली पीहर,
अपने पीहर जाने की, मैं कैसे कह पाऊँ सखियों।
सोचूँ रोज़ पहले अपने सारे रिश्तों को निभाऊँ,
पीहर जाने की फुर्सत भला कैसे पाऊँ सखियों।
©उषा शर्मा
Abhinav ji
24-Apr-2023 09:44 AM
Very nice 👍
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Punam verma
24-Apr-2023 07:23 AM
Very nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
24-Apr-2023 06:37 AM
बहुत ही खूबसूरत और भावनात्मक अभिव्यक्ति
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