बाबूजी की आलमारी बहुत याद आती है
आज भी बहुत याद आती है बाबूजी की आलमारी
विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष
बाबूजी की मधुर स्मृतियाँ जब तब स्मृति पटल पर दस्तक देती रहती हैं। उनकी पढ़ने में बहुत रूचि थी।
बाबूजी की किताबों की लकड़ी की बड़ी आलमारी में ढेरों किताबें रखी रहती रहती थीं। नंदन चम्पक, वेद पुराण से लेकर शेरलक होम्स, वेद प्रकाश शर्मा इत्यादि की ज़ासूसी किताबें, शिवानी, अमृता प्रीतम, मुंशी प्रेमचंद्र की मानसरोवर इत्यादि किताबें बाबूजी की आलमारी में थीं।
मनोरंजन, बाल जगत, धार्मिक,पाक शास्त्र,चिकित्सा से लेकर आध्यात्मिक किताबें करीने से विभाजित करके रखी हुई थीं।
पंच तंत्र, कथा सरित सागर, राधेश्याम रामायण कल्याण पत्रिका, सरिता, गृहशोभा हमारे घर में हर महीने आती थीं।
भगवती कथा के कई अंक थे आलमारी में भगवती कथा, कल्याण मैं बहुत रूचि से पढ़ती थी।
चम्पक, पराग, सरिता, नंदन, चाचा चौधरी, नन्ही दुनियाँ क्रिकेट सम्राटऔर भी बहुत सारी किताबें बाबूजी उतनी ही रूचि से पढ़ते थे जितनी की बड़े-बड़े उपन्यास।
आयुर्वेदिक चिकत्सा की किताबें भी बाबूजी की अलमारी में थीं जिससे वे लोगों की बीमारी के इलाज के नुस्खे भी बताते थे।
शादी के बाद जब मायके जाती बाबूजी की अलमारी में से कुछ किताबें लेकर पढ़ती किंतु बाबूजी के परलोक गमन के बाद उस अलमारी का महत्व कम होता गया कभी जाकर उसे झाँक लिया करती। अब जब कोरोना काल से लेखन में पुनः सक्रिय हुई तो बाबूजी की किताबों आलमारी बहुत याद आती है लेकिन ये जानते हुये कि बाबू जी क़ी बहुमूल्य आलमारी की मैं सुरक्षा नहीं कर पाईं, उसे उतना महत्वपूर्ण नहीं समझ पाई जितनी वो थी, किसी और को दोष देने से कोई फ़ायदा नहीं
पर कहीं न कहीं ये ज़रूर लगता है काश बाबूजी की आलमारी में वो सभी किताबें होतीं तो आज मेरे बहुत काम आतीं।अब समझ में आती है उनकी अहमियत पहले शौक -शौक में पढ़ लिया करती थी पर लेखन के प्रति ज्यादा गंभीर नहीं थी कुछ लिखकर कहीं लिख दिया करती थी। ये किताबें जो अभी पढ़ रही हूँ बाद में आसानी से नहीं मिलेंगी कभी सोचा नहीं था।
एक दिन भगवती कथा पढ़ने का मन हुआ गूगल छान डाली भगवती कथा नाम से कोई किताब नहीं मिली, उस समय बाबूजी की आलमारी बहुत याद आई।
एक दिन एक मंच पर राधेश्यामी छंद सीख रही थी तब लगा-"अरे राधेश्याम रामायण की लाइने भी तो हमलोग ऐसे ही गाया करते थे, तब भी बाबूजी की आलमारी बहुत याद आई। इस तरह बाबूजी की आलमारी अक्सर याद आती है और आती रहेगी।
©®स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
ऋषभ दिव्येन्द्र
24-Apr-2023 12:59 PM
जबरदस्त संस्मरण
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Abhinav ji
24-Apr-2023 09:51 AM
Very nice 👍
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Punam verma
24-Apr-2023 07:33 AM
Very nice
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