प्रेरणादायक कहानियां
उस समय कुछ पंछी वहां और आ गए थे | उनके सामने ही हंस और कौआ दोनों समुद्र की ओर उड़े | समुद्र के ऊपर आकाश में वह कौआ नाना प्रकार की कलाबाजियां दिखाता, पूरी शक्ति से उड़ा और हस से कुछ आगे निकल गया | हंस अपनी स्वाभाविक मंद गति से उड़ रहा था | यह देखकर दूसरे कोए प्रसन्नता प्रकट करने लगे |
थोड़ी देर में ही कौए के पंख थकने लगे | वह विश्राम के लिए इधर-उधर वृक्ष युक्त द्वीपों की खोज करने लगा | परंतु उसे उस अनंत सागर के अतिरिक्त कुछ दिख नहीं पड़ता था | इतने समय में हंस उड़ता हुआ उससे आगे निकल गया था | कोए की गति मंद हो गई | वह अत्यंत थक गया, और ऊंची तरंगों वाले भयंकर जीवों से भरे समुंद्र की लहरों के पास गिरने की दशा में पहुंच गया |
हंस ने देखा कि कौआ बहुत पीछे रह गया है, तो रुक गया | उसने कौए के समीप आकर पूछा – ” काक ! तुम्हारी चौच और पंख बार-बार पानी में डूब रहे हैं | यह तुम्हारी कौन सी गति है |
हंस की व्यंग्य भरी बात सुनकर कौआ बड़ी दीनता से बोला – ” हंस ! हम कोए केवल कांव-कांव करना जानते हैं | हमें भला दूर तक उड़ना क्या आएगा | मुझे अपनी मूर्खता का दंड मिल गया | कृपया करके अब मेरे प्राण बचा लो |
जल से भीगे अचेत और अधमरे कोए पर हंस को दया आ गई | पैरों से उसे उठाकर हंस ने उसे पीठ पर रख लिया और उसे लादे हुए उड़कर वहां आया जहां से दोनों उड़े थे | हंस ने कौए को उसके स्थान पर छोड़ दिया |