सर्दियों की रात मे
उन दिनों महज 16-17 साल की थी मैं,
और रातों को जागने की आदत मेरी नई-नई थी.
तुम्हें तभी तो नोटिस करना शुरू किया था मैंने,
और तुम्हारे साथ होने पर मुझे जो मिलती थी वो राहत नई-नई थी.
पता ही नहीं चला कि यह मुलाकात कब आदत बन गई और आदत कब जरूरत और जरूरत कब चाहत में बदल गई. शायद!!! लड़कपन की वह मेरी पहली मोहब्बत नई-नई थी. उस समय इस जुनून, उस फितूर और इस सुकून का एहसास पहले कभी हुआ ही नहीं था. क्योंकि तुम थे मेरे पास ऐसे जैसे कोई नहीं था.
याद है मुझे कि :
जब मैं थक हार कर घर आया करती थी,
और तेरा चेहरा देखकर फिर से खिल जाया करती थी. गेहूं सा तेरा वो रंग न जाने कैसा जादू करता है,
यार! I have no idea
मैं बस तेरी खुशबू से बहक जाया करती थी.
उस वक्त, उस पल, उस लम्हा तुम थे, मैं थी
हमारे दरमियां और कोई नहीं था,
तुम थे मेरे पास ऐसे जैसे कोई और नहीं था.
Remember,
उन दिनों सर्दियों की रातों में
सब घर वालों को सुलाकर
छत पर आ जाया करती थी.
कभी तुझे और कभी उस चांद को,
ताकती चली जाती थी.
तुम और चांद बड़े ध्यान से सुनते थे मुझे
जब मैं अपनी नोबेल के शब्द दर शब्द
पढ़ती चली जाती थी.