Reema Thakur

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Reema

लेख प्रतियोगिता "

९/३/२०/२१
गाँव का सफर 
शीर्षक-परिवेश
'''''''कहानी'''''''''"""""""""""""
बस हिचकोले लेते हुऐ अपने गंतव्य की और बढ रही ,गमी का मौसम भरी दुपहरी'जून का महीना "उस पर ठसाठस भरी हुई बस ,पसीने की उडती हुई दुगंध,सुभाषी का मन मिचलने लगा। ,उसे ऊबके आने लगे"
वो मन ही मन समय को कोसने लगी,पता नही कौन सी घडी मे निकली थी घर से ,आज गाडी भी खराब होनी थी वो मन ही मन बुदबुदायी,राकेश भी हमेशा  वक्त पर साथ छोड देते है"
वो मन ही मन राकेश पर झल्लाई""
सुभाषी ने आँखे बंद कर ली ,ताकि बस के शोर शाराबे से निजात मिले"अब बस धीमी गति से चल रही थी,शान्त बैठने से हवा के झोके अब महसूस होने लगे थे"
अब सुभाषी को कुछ अच्छा महसूस होने लगा था"वो अपने आप अतीत की गलियो मे खोने लगी थी"
राकेश उसे मिला था ,एक दोस्त की पाटी मे और वो अपना दिल हार बैठी थी'और धीरे धीरे दोनो का प्यार परवान चढा ,और परिवार की स्वीकृति मिल गई,और दोनो पवित्रबंधन मे बंध गये"


Reema

-सुभाषिनी को झटका तब लगा,जब उसे पता चला,उसे गाँव मे रहना होगा,पर उस समय वो कुछ न बोली'उसने सोचा बाद मे वो राकेश को अपने साथ दिल्ली ले आऐगी"""

और समय के साथ सुभाषिनी अपनी चाहत मे कामयाब भी हो गई"
वो किसी न किसी बहाने दिल्ली चली जाती""
कुछ ही सालो मे सुभाषिनी के दो बेटे हो गये और अब उनको पढाना है ।इसी बहाने के साथ,
वो दिल्ली आ गई,,थक हार कर राकेश को वही घर बनना पडा "
सब कुछ अच्छा चल रहा था'की राकेश की दादी बीमार हो गई"
राकेश बैक मे कार्यरत था,और उसे छुट्टी नही मिल पा रही थी"""""
बस झटके से उछली ,सुभाषिनी यादो से बाहर आ  गई"
बस अब पूरी तरह से रुक चुकी थी ,उसने खिडकी से झाँक कर देखा"
ससुर जी दो तीन लोगो के साथ नजर आ गये"
उसने अपना अस्त व्यस्त पल्लू सम्भाला और बस से नीचे आ गई,
ससुर जी के पैर छुऐ,और कार की ओर बढ गई"
दस मिनट मे कार पगडंडियो के बगल से गुजरने वाले कच्चे रास्ते को पार कर घर के सामने खडी थी""""
घर के बाहर काफी लोग खडे थे"उसका मन अंनजानी अशंका से भर उठा,वो घर मे कदम रखते हुऐ सोच रही थी !
क्या दादी नही रही"""




Reema

-कोहराम मचा था ,घर मे,अरे राकेश की दुल्हन आ गई"""

एक औरत बोली"
कुछ ही घटो मे दादी पंचतत्व मे विलीन हो चुकी थी"
फिर अगली सुबह शुरु हुआ रिति रिवाजो और कुप्रथाओ का चलन,
सुबह नदी पर ठंडे पानी का स्नान,गीले कपडो मे घर आना""""
बिना मिर्च मासाले का भोजन " ये सब ठीक था"सासू माँ का बीमार होना,और १३दिन तक घर से बाहर न जाना"""
घुटन सी हो रही थी सुभाषिनी को"वो राकेश के आने का इन्तजार कर 
रही थी"""
दसवें वाले दिन राकेश सुबह ही आ गये थे"
उसी शाम दोनो बचों को डायरिया हो गया था"
शायद कुछ गलत खाने मे आ गया था"सुभाषिनी ने किसी की बात न सुनी" और बच्चों को अस्पताल लेकर आ गई"इस घटना से,पूरे गाँव मे भूचाल आ गया था"""
और उसे सबकी नाराजगी सहनी पडी"
बचों के ठीक होते ही सुभाषिनी और राकेश ने निश्चय किया की अब वो गाँ कभी नही आऐगे,"""
अभी वो बाहर निकल ही रहे थे"बाबू जी ने रास्ता रोक लिया""
उनकी "आँखे भर आयी"राकेश की आँखे भी भर आयी"सुभाषिनी
को राकेश की वेदना समझ आ चुकी थी"और बच्चे भी दादी को पकडे खडे थे"अब सुभाषिनी,का मन भी बदल चुका था"उसे इन दिनो परिवार मे जो प्यार समान मिला"उसके आ़खो मे चलचित्र की तरह घूम गया ,उसकी आँखो मे छुपे आँसू अब रुक न पाये"और वो सासू माँ  के गले लग गयी"""""""समाप्त✍️🏻✍️🏻✍️🏻🙏🏼🙏🏼🙏🏼
रीमा ठाकुर   (लेखिका)
रानापुर -झाबुआ -मध्यप्रदेश'भारत🙏🏼

Reema

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1 Comments

Aliya khan

10-Mar-2021 02:18 AM

Bahut khoob❤

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