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सांझ-सवेरे

सांझ-सवेरे:
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प्रतिदिन सांझ-सवेरे मुझको याद तुम्हारी आती है,
ख़्यालों मे तुम्हरे  ही मेरी अब  रात गुज़रती जाती है।

न जानें कैसे होंगे तुम कैंसा खाना-पीना होगा,
शाम को थक कर आते होगे,कौन ख़्याल करता होगा ।

कोई चिट्ठी न पाती है ,मैं कैंसे दिल को समझाऊं,
सोचा करती हूं अक्सर मैं कैंसे उड़ कर आ जाऊं।

पूजा-अर्चन करके प्रतिदिन मै निकट तुम्हारे आती थी,
प्यार तुम्हारा पा कर मैं,प्रभु का आभार जताते थी।

ईश्वर से प्रतिदिन ही मैं अब कुशल मनाया करती हूं,
तुम सुखी रहो आबाद रहो विनती  बस ये ही करती हूं।

काम से जब निबृत हो कर मैं निज कमरे मे आती हूं
तुम्हारी यादों मे खो कर मैं आंसू रोज बहाती हूं।

कभी ख़्याल आता है मुझको भुला दिया‌ तुमने ज़ानम,
नये चमन  मे नये फूल से उलझा होगा‌ तन ओ मन।

तुम जहां रहो खुशहाल रहो मेरा क्या है मैं जी लूंगी,
हर सांझ-सवेरे यादों को दिल से अपने लगा लूंगी।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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5 Comments

Abhinav ji

27-Apr-2023 09:22 AM

Very nice 👍

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Reena yadav

26-Apr-2023 07:25 PM

👍👍

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