लेखनी प्रतियोगिता -26-Apr-2023 कविता
तुम प्राणनाथ हो
हे! प्रियतम तुम प्राणनाथ हो
तुमसे ही संसार है मेरा
सूरज। चंदा मैं क्या जानूँ
तुमसे ही जीवन में उजाला
माथे बिंदिया जो चमकती
घर आँगन को रोशन करती
हाथों के कंगन की खन-खन
तुमको ही पिया पास बुलाती
होठों की लाली जब है सजती
इन होठों की मुस्कान तुम्ही हो
पैरों की छन छन पायल भी
नाम तुम्हारा ही हरदम लेती
बाग-बगीचे में जब तुम संग
फूलों की खुशबू मन को भाती
टिम-टिम करते रात में तारे
बात हमारे प्यार की करते
इस जीवन में प्राण तुम्हीं हो
तुम्हारे लिए सूरज को भी रोकूँ
जब तक सांस रहेगी तन में
हर एक सांस में तुम ही तुम हो
स्वरचित एवं मौलिक रचना
डॉ अनुराधा प्रियदर्शिनी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश
अदिति झा
27-Apr-2023 02:44 PM
Nice
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Abhinav ji
27-Apr-2023 09:15 AM
Very nice 👍
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डॉ. रामबली मिश्र
27-Apr-2023 07:56 AM
👏👌
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