Rakesh rakesh

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लेखनी प्रतियोगिता -26-Apr-2023 यादों की डायरी

मेरा नाम अविनाश है। मैं सीपीडब्ल्यूडी विभाग में डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हूं। मैं अपने बचपन की यादों को डायरी में इसलिए लिख रहा हूं, ताकि मैं अपने बुढ़ापे में अपने बचपन की उन यादों को ताजा कर सकूं।


जब मैं दो बरस का था। मेरे पिता का देहांत हो गया था। मेरी विधवा मां ने ही मुझे पढ़ा लिखा कर कामयाब इंसान बनाया। लेकिन बार-बार  किराए का मकान बदलने की वजह से मेरी मां ने 6 साल की आयु मे अपने घर के पास वाले प्राइमरी स्कूल में दाखिला दिलाया, क्योंकि पड़ोस के और भी बच्चे उस स्कूल में जाते थे। मेरी मां प्राइवेट कोठियों में झाड़ू पोछा बर्तन कपड़े धोना खाना बनाना आदि काम करती थी। इसलिए कभी-कभी मां को मुझे विद्यालय से लाने में देर हो जाती थी, तो पड़ोस की महिलाएं अपने बच्चों के साथ मुझे घर से आती थी।

 मां जिस कोठी में काम करती थी वहां शादी थी इसलिए मां मुझे उस दिन विद्यालय लेने नहीं आ पाई थी। तो मां ने पड़ोस की आंटी को बता दिया था कि मेरा खाना कपड़े में लपेटकर टोकरी में रख दिया है।

मैंने जैसे ही खाना खाने के लिए टोकरी खोली तो कपड़े में एक पराठा अचार के साथ और चार पांच कच्चे आलू थे। उस दिन मुझे अपनी मां पर बहुत गुस्सा आया था। क्योंकि थोड़ी देर बच्चों के साथ खेलने के बाद मुझे दोबारा भूख लगी, तो टोकरी में रोटी की जगह चार पांच कच्चे आलू देखकर मुझे बहुत गुस्सा आया।

गुस्से में मैंने सारे कच्चे आलू दीवार पर फेंक फेंक कर मारे। शाम को मां के आने के बाद मां से चिल्ला चिल्ला कर कहा की मेरे लिए एक ही पराठा रखा था मैं सारे दिन भूख से तड़पता रहा। और मैंने गुस्से में कमरे की दीवार पर सारे कच्चे आलू फेंक फेंक निशान बना दिए हैं।

उसी समय मां मुझे सीने से लगा कर रोने लगी रो रो कर कहने लगी कि "बेटा वह कच्चे आलू नहीं चीकू थे। चीकू फल होता है। मैं ना तुझे पूरे महीने दूध पिला पाती और ना ही कोई फल खिला पाती, इसलिए बेटा तुझे क्या पता कि चीकू फल होता है।"

और दूसरे दिन ही मां ने एक और प्राइवेट कोठी का काम शाम के समय का ढूंढ लिया था। इस वजह से मां अब शाम को भी देर से आने लगी थी। लेकिन अब मुझे रोज पीने के लिए दूध मिलता था और सप्ताह में दो बार केला संतरा सेब चीकू इनमें से कोई ना कोई एक फल खाने के लिए मिलने लगा था। 

एक दिन मैं घर के बाहर अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था तो उसी समय मेरे मामा एक साधु के साथ हमारे घर आए साधु को मेरे मामा ने घर के बाहर ही खड़ा कर दिया और हमारे घर के अंदर जाकर मेरी मां से कुछ देर बात की फिर मामा और मां घर के अंदर से बाहर आए। मेरी मां ने उस साधु के पैर छूकर मुझे बुलाया। मैं जैसे ही उस साधु के पास पहुंचा तो उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया।

 मां मामा और साधु की बातों से मुझे पता चला कि वह मेरे पिता है। आज तक मां ने मुझे झूठ कहा था कि मेरे पिता की मृत्यु हो गई है।

 उस दिन के बाद से मेरे पिता हमारे साथ ही रहने लगे थे। ना मैंने उनसे पूछा कि आप सन्यासी क्यों बन गए थे ना उन्होंने मुझे बताया कि मैं सन्यासी क्यों बन गया था। 

लेकिन अब मेरे साथ-साथ मां पर मेरे साधु पिता की भी जिम्मेदारी आ गई थी। मेरे साधु पिता पूरा सप्ताह घर पर रहते थे। सिर्फ मंगलवार को शाम को मंदिर से प्रसाद इकट्ठा करके हमारे खाने के लिए घर लाते थे। पता नहीं क्यों फिर भी मेरी अनपढ़ मां गंजेड़ी चरसी पति को पति परमेश्वर क्यों मानती थी।

मेरे कॉलेज का फाइनल ईयर था मैं जैसे ही कॉलेज से घर आया तो मुझे मां घर के आंगन में बैठकर रोती हुई मिली तो मां ने मुझे बताया कि 'तेरे पिता मुझसे झगड़ा करके हमेशा के लिए हिमालय चले गए हैं।"

इसलिए मैं हमेशा परमात्मा से दुआ करता हूं, कि बच्चों को माता-पिता का बराबर प्यार मिले और माता पिता की पूरी जिम्मेदारी होती है, बच्चे का उज्जवल भविष्य बनाने की। और मेरी जैसी मां हर एक बच्चे को मिले।

मैं बेटे पति पिता होने का अपना फर्ज पूरी ईमानदारी से निभा रहा हूं। मैं अपने बचपन की यादों को इसलिए हमेशा याद करना चाहता हूं की मेरे बच्चों को और उनके बच्चों को मेरे जैसा बचपन ना मिले और वह मेरे बचपन की यादों से सीख ले।




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7 Comments

Gunjan Kamal

28-Apr-2023 10:32 AM

बहुत ही सुन्दर

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Varsha_Upadhyay

27-Apr-2023 05:02 PM

बहुत ही सुन्दर

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अदिति झा

27-Apr-2023 02:56 PM

Nice 👍🏼

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