न्यायप्रणाली
यह चीख पड़ा, “असम्भव, मैं न तो तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ और न ही तुम्हें रोक ही सकता हूँ।” “नहीं, आप कर सकते हैं,” ऑफिसर ने पर्याप्त विश्वास के साथ कहा। आशंकाओं के बीच अन्वेषक ने देखा कि ऑफिसर ने अपनी मुट्ठियाँ कस कर भींच ली हैं।
“नहीं, आप अवश्य ही कर सकते हैं”, ऑफिसर ने अपनी बात दोहराई और जोर देते हुए कहा, “मेरे पास एक योजना है जो निश्चित रूप से सफल होगी। आपके विचार से आपका प्रभाव अपर्याप्त है,
लेकिन मैं जानता हूँ वह पर्याप्त है। एक मिनट को मान लीजिए कि आपकी सोच सही है, तो भी इस परम्परा की रक्षा के प्रयास करने में उसके उपयोग करने में क्या आपत्ति हो सकती है? आप मेरी योजना को तो सुन लीजिए।
इसकी सफलता के लिए आवश्यक है कि आप अपनी राय निष्कर्षों के सम्बन्ध में जितना सम्भव हो कुछ भी न बोलें। आप खामोश रहें, जब तक आपसे सीधे प्रश्न न किया जावे तब तक आप एक शब्द भी न कहें। जो कुछ भी कहें, वह सामान्य राय हो और संक्षिप्त हो।
यह मान कर चला जावे कि इस सम्बन्ध में आप कुछ भी कहना उचित नहीं समझते कि इस सम्बन्ध में आप चुप रहना ही पसन्द करते हैं और यदि आपको इस सम्बन्ध में बाध्य किया ही गया तो आप बेहद कटु भाषा का उपयोग करेंगे।
इसका यह अर्थ नहीं कि मैं आपको झूठ बोलने के लिए कह रहा हूँ, कतई नहीं, आप केवल संक्षिप्त उत्तर ही देंगे जैसे, ‘हाँ, मैंने दण्ड देते देखा है\' अथवा, ‘हाँ मुझे विस्तार से समझा दिया गया था\' बस इतना ही कहें और कुछ भी हालाँकि आपके धैर्य की परीक्षा के लिए गुंजाइश है, लेकिन उनके सम्बन्ध में कमाण्डेंट सोच ही नहीं पाएँगे।
हालाँकि इसकी पर्याप्त सम्भावना है कि वे आपके शब्दों के मनमाने अर्थ अपनी रुचि के अनुसार निकाल लें बस, इसी पर मेरी योजना निर्भर करती है। कल कमाण्डेंट के ऑफिस में सभी उच्चधिकारियों की कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई है और स्वयं कमाण्डेंट उसकी अध्यक्षता करेंगे।
हालाँकि वे उन लोगों में से हैं जो कॉन्फ्रेंस को जनता के सामने तमाशे के रूप में प्रस्तुत करना पसन्द करते हैं। इसी सोच के चलते उन्होंने एक गैलरी का निर्माण कराया है जो हमेशा दर्शनार्थियों से भरी रहती है।
इन कॉन्फ्रेंसों में भागीदारी मेरी विवशता है, जबकि वहाँ मुझे चक्कर आने लगते हैं। बहरहाल जो होना होगा सो तो होकर रहेगा, लेकिन इस कॉन्फ्रेंस में आपको निश्चित तौर पर आमन्त्रित किया जाएगा।
यदि आप मेरे सुझावों पर अपनी सहमति देते हैं तो ऐसी स्थिति में आपका आमन्त्रण विशेष अनुरोध में परिवर्तित हो जावेगा। लेकिन मान लीजिए किन्हीं गुह्य कारणों से आपको आमन्त्रित नहीं किया जाता है तो आप स्वयं वहाँ उपस्थित रहने की इच्छा व्यक्त करेंगे और तब आपके निमन्त्रण में कोई सन्देह नहीं रहेगा।
अतः आप हर हाल में कल कमाण्डेंट के बॉक्स में महिलाओं के साथ निश्चित रूप से रहेंगे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप वहाँ हैं या नहीं बार-बार चारों ओर देखते रहेंगे। बहुत से छोटे-मोटे महत्त्वहीन विषयों के बाद जो मात्र दर्शकों को प्रभावित करने के लिए रखे जावेंगे-जिनमें अधिकांश बन्दरगाह के विषय में होंगे।-
उनके बाद हमारी न्यायप्रणाली का विषय चर्चा के लिए रखा जावेगा। यदि कमाण्डेंट ने उसे पेश नहीं किया वह भी शीघ्र ही, तो मैं देखूँगा कि वह रखा जावे। मैं खड़े होकर यह रिपोर्ट प्रस्तुत करूँगा कि दिया जाने वाला दण्ड पूरा किया जा चुका है। सब कुछ संक्षेप में, एक वक्तव्य जैसा
इस प्रकार के वक्तव्य देने की सामान्यतः परम्परा है नहीं लेकिन फिर भी मैं दूँगा। हमेशा की तरह मुस्कराहट के साथ कमाण्डेंट मुझे धन्यवाद देंगे और फिर वे स्वयं को रोक नहीं पाएँगे। अपने हाथ आए इस सुनहरे अवसर को वे कतई नहीं जाने देंगे।
‘अभी-अभी रिपोर्ट दी गई है', वे कहेंगे, या फिर इसी अर्थ को व्यक्त करने वाले अन्य शब्दों में, ‘कि आज एक व्यक्ति को दण्ड दिया गया है। मैं यहाँ इस बात पर विशेष बल देना चाहूँगा कि हमारी कॉलोनी का दण्ड-विधान एक प्रसि( अन्वेषक की आँखों के सामने दिया गया था,
जिन्होंने हमारी इस काला पानी कालोनी में आकर हमें सम्मान दिया है। आज की कॉन्फ्रेंस में उनकी उपस्थिति हमारी इस बैठक को भी महत्त्वपूर्ण बना रही है। क्या हमें प्रसिद्ध अन्वेष अतिथि से हमारी पारम्परिक मृत्यु दण्ड विधि के विषय में उनकी राय नहीं जाननी चाहिए?
' -स्वाभाविक है उनके इस प्रस्ताव पर उपस्थित जन समूह तालियाँ बजाकर सहमति प्रकट करेंगे और मैं स्वयं उनके इस प्रस्ताव का पूरी ताकत से समर्थन करूँगा और तब कमाण्डेंट आपके सम्मान में सिर झुका कर आपसे कहेंगे, ‘अब मैं उपस्थित सदस्यों की ओर से आपके सामने प्रश्न रखता हूँ'
और तब आप अपनी सीट से उठ बॉक्स के सामने आएंगे और हाथ सामने रखेंगे ताकि सभी उन्हें देख सकें, या फिर यह भी हो सकता है कि महिलाएँ आपका हाथ पकड़ लें और आपकी उंगलियों को हौले से दबावें और फिर आप अपनी राय व्यक्त करेंगे। विश्वास कीजिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं कि आपके बोलने के क्षण की प्रतीक्षा मैं कितने टेंशन में करता रहूँगा।
आप किसी भी प्रकार के बंधन को नहीं स्वीकारेंगे जब आप बोलने के लिए प्रस्तुत होंगे। आप बोलेंगे और जोर से बोलेंगे और सच बोलेंगे। आप बॉक्स के सामने झुकें, चिल्लाएँ, अपनी राय पर्याप्त जोर से बोलें, पूर्ण विश्वास के साथ पर्याप्त निडरता के साथ कमाण्डेंट से कहें।
यह सम्भव है कि आपको इस तरह की प्रस्तुति पसन्द न हो। वैसे भी यह आपके स्वभाव के अनुकूल भी तो नहीं है, शायद आपके देश में लोग अपनी बात दूसरे ढंग से प्रस्तुत करने के आदी हों। यदि ऐसा है तो भी कोई अन्तर पड़ने वाला नहीं है।
वैसा करना भी पर्याप्त प्रभावशाली होगा। आप चाहें तो खड़े भी न होंवे, बस कुछ शब्द मात्र कह दें यहाँ तक कि फुसफुसाकर इतने धीमे कि मात्र आपके नीचे बैठे अधिकारी ही सुन सकें- ऐसा हुआ तब भी पर्याप्त होगा, आपको यह कहने की आवश्यकता नहीं कि मृत्युदण्ड को जनता का समर्थन प्राप्त नहीं है,
आवाज़ करता व्हील, टूटा पट्टा, गंदे फेल्ट की कोई चर्चा करने की आवश्यकता नहीं, इन सब समस्याओं को तो मैं स्वयं ही उठाऊँगा और विश्वास रखें कि मेरे आरोप कमाण्डेंट को हाल छोड़ देने को विवश नहीं भी कर पाए तो उन्हें घुटने टेक कर, ‘पूर्व कमाण्डेंट के सामने मैं नतशिर हूँ, कहने के लिए बाध्य कर दूँगा।