मशीन
बहरहाल इस बीच ऑफिसर मशीन की ओर मुड़ चुका था। यह तो पहले ही स्पष्ट हो चुका था कि वह मशीन की कार्यप्रणाली को अच्छी तरह समझता है, लेकिन यह समझ के बाहर था कि वह कैसे उसे संचालित करेगा और मशीन उसकी बात मान चलेगी।
ऑफिसर के हाथ को केवल हैरो तक पहुँचना भर था और उसे उठना था और नीचे उसके शरीर के अनुसार व्यवस्थित होना था, उसने बेड के किनारे को छुआ भर और मशीन ने थरथराना शुरू कर दिया, फेल्ट गेग उसके मुँह की ओर बढ़ गया।
कोई भी देख सकता था कि ऑफिसर उसे मुँह में रखने का इच्छुक नहीं था, एक पल को उसने मुँह बिपकाया और फिर उसे मुँह में रखने को तैयार हो गया और मुँह खोल रख लिया।
सब कुछ ठीक था लेकिन दोनों ओर अभी भी पट्टे बाहर लटके हुए थे, स्वाभाविक है उनकी आवश्यकता ही नहीं थी, ऑफिसर को बाँधने की जरूरत ही क्या थी। तभी सजायाफ्ता की नज़र पट्टों पर पड़ी, उसकी राय में सजा तब तक पूरी नहीं होती जब तक पट्टे बाँध न दिए जाएँ।
उसने सैनिक को इशारा किया और दोनों ही ऑफिसर को बाँधने तेजी से लपके। उधर ऑफिसर ने पैर को खींचकर डिजाइनर के लीवर को दबाने की कोशिश शुरू कर दी थी, जैसे ही उसने दोनों व्यक्तियों को आते देखा तो उसने अपना पैर वापिस खींच लिया और उन दोनों को बाँधने के लिए अपने को पूरी तरह छोड़ दिया।
लेकिन बँध जाने के कारण वह लीवर तक नहीं पहुँच पा रहा था और ना ही सैनिक और सजायाफ्ता उसे खोज पाने में सफल हो रहे थे और अन्वेषक अपने मन में उँगली तक न उठाने का निश्चय कर चुका था। लेकिन इस सबकी आवश्यकता ही नहीं पड़ी, जैसे ही पट्टे बँधे, मशीन ने चलना शुरू कर दिया, बेड काँपने लगा, सुइयाँ देह में चुभने लगीं, हैरो ऊपर-नीचे होने लगा।
अन्वेषक बहुत देर तक देखता रहा और अचानक उसे याद आया कि डिजाइनर का एक व्हील किर्र-किर्र पहले कर रहा था, लेकिन फिलहाल मशीन से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, यहाँ तक कि हल्की भनभनाहट भी सुनाई नहीं पड़ रही थी।
चूँकि मशीन शान्ति से चल रही थी इसलिए उस पर किसी का भी ध्यान ही नहीं था। अन्वेषक ने सैनिक और सजायाफ्ता की ओर देखा। दोनों में से सजायाफ्ता ही अधिक रुचि ले रहा था लेकिन उसका ध्यान मशीन पर ही अधिक था, पंजों के बल खड़े हो वह उँगली से सैनिक को विस्तार से समझा रहा था। यह हरकत अन्वेषक को नागवार लग रही थी।
उसने वहाँ अन्त तक रहने का मन बना लिया था, लेकिन इन दोनों की हरकतों को वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। “जाओ, अपने घर भागो”, उसने दोनों से कहा। यह सुन सैनिक तो जाने के लिए तैयार हो गया, लेकिन सजायाफ्ता ने इस आदेश को सजा के रूप में लिया। उसने हाथ जोड़कर रुके रहने की प्रार्थना की, लेकिन जब अन्वेषक ने सिर हिला दिया तो घुटनों पर बैठ गिड़गिड़ाने लगा।
अन्वेषक की समझ में आ गया कि मात्र शब्दों से काम चलने वाला नहीं है अतः उन्हें भगाने के उद्देश्य से वह आगे बढ़ने वाला ही था कि तभी उसने डिजाइनर से निकलती अजीब-सी आवाज़ सुनी तो सिर उठाकर देखा। क्या कॉग व्हील कुछ परेशानी पैदा करने वाला है? लेकिन गड़बड़ी और कहीं थी, डिजाइनर का ढक्कन धीरे-धीरे खुलना शुरू हुआ और फिर पूरी तरह खुल गया।
एक कॉगा व्हील के दाँते दिखे, ऊपर उठे और कुछ ही देर में पूरा व्हील ही दिखने लगा, जैसे कोई अनजानी शक्ति डिजाइनर को निचोड़ रही हो, व्हील क्रमशः डिजाइनर की कगार तक निकल आया और फटाक् से जमीन पर गिर कुछ दूर तक लुढ़ककर चला गया।
उधर वहाँ दूसरा व्हील उठने लगा था, जिसके पीछे बड़े और छोटे व्हील उठने लगे और बाहर निकल गिरते गए, हर पल यही लगता था कि शायद डिजाइनर खाली हो गया है लेकिन तभी एक और व्हील उठते हुए दिखने लगता था और लुढ़क कर जमीन पर खन् से गिर जाता था।
इस अनहोनी को देख सजायाफ्ता अन्वेषक के आदेश को पूरी तरह भूल चुका था। कॉग व्हील उसे बाँधे हुए थे, वह हर बार लपकने में सैनिक को उकसाता था, लेकिन हर बार डरकर हाथ अलग कर लेता था क्योंकि तभी दूसरा व्हील कूद पड़ता था और वह सहम कर हाथ पीछे खींच लेता था।
दूसरी ओर अन्वेषक यह सब देख परेशान हो रहा था, मशीन के टुकड़े-टुकड़े हो रहे थे। उसका खामोशी से चलना एक भ्रम था। वह महसूस कर रहा था कि उसे ऑफिसर की सहायता करनी चाहिए क्योंकि ऑफिसर तो कुछ भी करने में असमर्थ था।
चूँकि कॉग व्हील उसका पूरा ध्यान खींचे हुए थे इसलिए मशीन के दूसरे भागों की ओर उसका ध्यान जा ही नहीं पा रहा था। लेकिन अब चूँकि अन्तिम कॉग व्हील डिजाइनर से बाहर निकल चुका था, वह हैरो की ओर झुका तो उसके सामने एक नया लेकिन दुःखद आश्चर्य सामने था, हैरो ने लिखना बन्द कर दिया था, बस छेद किए जा रहा था और बेड देह को घुमा नहीं रहा था, केवल सुइयों के सामने काँप भर रहा था।
अन्वेषक सम्भव हस्तक्षेप करना चाह रहा था अर्थात् मशीन को बन्द करना चाह रहा था, क्योंकि जो कुछ हो रहा था, वह पीड़ा न थी, जो मशीन का उद्देश्य था, वरन् हत्या थी। उसने हाथ बढ़ाए लेकिन तभी हैरो उठा और उसके साथ देह भी एक और झुक गई, जैसा उसे बारहवें घण्टे में करना चाहिए था।
देह से खून हजारों झरनों की तरह बह रहा था, पानी के जेटों के काम बन्द कर देने से उसमें पानी नहीं मिल रहा था। साथ ही मशीन ने अपना अन्तिम काम भी नहीं किया था, देह लम्बी सुइयों से बाहर नहीं फिंकी थी वरन् रक्तरंजित देह कब्र में गिरने की जगह ऊपर लटकी हुई थी। हैरो अपनी पुरानी स्थिति में आना चाहता था,
लेकिन जैसे उसे इस बात का अहसास हो कि अभी वह बोझ मुक्त नहीं हुआ है इसलिए वह कब्र के ऊपर रुका हुआ था। “देख क्या रहे हो आओ मेरी सहायता करो”, अन्वेषक ने उन दोनों से चिल्लाकर कहा और आगे बढ़ ऑफिसर के पैर पकड़ लिए।
वह पैरों को पकड़ धक्का देना चाहता था, साथ ही चाहता था कि दोनों दूसरी ओर जा सिर को पकड़ लें, केवल इसी प्रकार ऑफिसर को धीरे-धीरे सुइयों से मुक्ति मिल सकती थी। लेकिन वे दोनों कुछ भी निश्चित नहीं कर पा रहे थे, बल्कि सजायाफ्ता तो मुड़ भी चुका था।
अन्वेषक ने उनको यों ही खड़ा देखा तो वह उनके पास पहुँचा और दोनों को सिर की ओर धकेल दिया। लाख न चाहने के बावजूद उसकी नज़र लाश के चेहरे पर चली गई, वह वैसा ही दिख रहा था जैसे जीवित रहते था,
वहाँ मुक्ति का कोई भाव न था जो मशीन से दूसरों को प्राप्त हुआ था, ऑफिसर के भाग्य में वह नहीं बदा था, उसके दोनों ओंठ कसकर बन्द थे, खुली आँखों में वही भाव था जो उसके जीवित रहने पर था, उनमें शान्ति और आत्मविश्वास था और माथे के बीचों-बीच बड़ी कील बाहर निकली हुई थी।