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कोहराम




*कोहराम*

मचा कोहराम कोरोना,धरा है काँपती थर-थर,
रहा हो मृत्यु का तांडव,ज़िंदगी हो गई जर्जर।
घड़ी संकट की है आई सभी जन बच के रहना-
परस्पर प्यार तो रखना मगर रहना ज़रा हटकर।।

नियमित हाथ को धोना,सफाई करते रहना है,
लिए विश्वास मन में जीत की लड़ते ही रहना है।
कभी भी काम-धंधे भी न रुकने पाएँ ऐ मित्रों-
बचा,आजीविका को भी चलाना है हमें मिलकर।।

हवा का रुख़ नहीं रहता कभी भी एक ही जैसा,
ज़रूरी है नहीं जो आज है  वो  कल  रहे  वैसा।
प्रकृति का है यही नियमन हमें है मानना इसको-
हमारा फ़र्ज़ है इतना करें हम सामना डटकर।।

होना नहीं कोहराम से अब भयभीत भी सुन लो,
रहे जब सामने संकट उसे तब प्रेम से चुन लो।
स्वयं पर रख नियंत्रण धैर्य से आगे क़दम रखना-
मुसीबत के सभी बादल चले जाते कहीं छँटकर।।

अँधेरी रात आती है लिए स्वर्णिम सवेरा भी,
 ग़मों के बाद लगता मित्रवर खुशियों का फेरा भी।
 यहाँ देखा गया है  बस  यही  तूफ़ान आने पर-
 सफ़ाई हो जाती है सभी कचरों की भी जमकर।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

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1 Comments

Reena yadav

02-May-2023 01:55 PM

👍👍

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