Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय मां

*देवों ने भी सर झुकाया मां को किया प्रणाम है*
*मां से उत्तम कोई शब्द नहीं मां स्वयं में महान है..!!*
*माँ एक शब्द पूरा ब्रह्मांड"*
*माँ के अस्तित्व को समर्पित ये सम्मान्*

*अपने कर्मों से खुद और दूसरों को आनंद देना ही मानव का परम धर्म है. मन से,बचन से और शरीर से आनंद देना है...*

*इसी प्रकिया को "सेवा" कहते हैं*

*जब हमारे मन में,  किसी को आनंद देनें का विचार और सोच हो तो सेवा है गया...*

*अगर हमारी प्रत्येक वचन,किसी को आनंदमय कर्म करने की प्रेरणा दे सके तो सेवा हो गया....*

*अगर हमारा हाथ किसी गिरे हुए व्यक्ति को उठाने का कर्म करे तो सेवा हो गया...*

*जब हमारा पैर किसी को मदद करने के जाते हैं तो सेवा हो गया....*

*सेवा करने से ईश्वर का भजन हो गया...*

*ईश्वर  की पूजा सेवा ही है...किंतु सेवा हम उसी के करेंगे जिससे हम प्रेम करेंगे  और जिससे प्रेम करेंगे उसी के लिए त्याग करेंगे...
सुनीता

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2 Comments

Sachin dev

14-May-2023 08:41 PM

Nice

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बहुत खूब

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