सर्वप्रथम माँ शारदे को नमन,
तत्पश्चात "लेखनी" मंच को नमन,
मंच के सभी श्रेष्ठ सुधि जनों को नमन,
विषय:- 🌹 स्वैच्छिक 🌹
शीर्षक -- 🌷 पंखुड़ी 🌷
दिनांक -- १५.०५.२०२३
दिन -- सोमवार
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ज्यों कदम रखी दहलीज़ पर, लोग मुझे डराने लगे।
पंखुड़ी रूप यौवन को देख, भँवरे सभी मंडराने लगे।।
मैं ठहरी मासूम सी कली, पंखुड़ी मेरी अति कोमल।
फूल बनने से पहले क्यों, औरों को हाथ धराने लगे।।
मंद मंद पवन संग मैं, सारी बगिया महकाती थी।
जिसने मुझे सींचा, उन चरणों में शीश नवाती थी।।
देख मुझे बागों की कलियाँ, मंद मंद मुस्काती थी।
उन कलियों को चुन कर, घर द्वार को सजाती थी।।
उपवन की शोभा थी कभी, जानें कब मैं ख़ार बनी।
मधुरिम सुधा जो थी कभी, आज क्यों मैं क्षार बनी।।
मैं मासूम अति भोली, सौम्य सरल व्यवहार किया।
शाखा से विच्छेद किया, जिसने मुझसे प्यार किया।।
ना तोड़ो नाजुक पंखुड़ी को, फूल नहीं बन पाऊँगी।
समय से पहले वृक्ष बनी तो, फल नहीं दे पाऊँगी।।
🙏🌹 मधुकर 🌹🙏
(अनिल प्रसाद सिन्हा 'मधुकर', जमशेदपुर, झारखण्ड)
(स्वरचित मौलिक रचना, सर्वाधिकार ©® सुरक्षित)
Milind salve
16-May-2023 09:28 AM
बहुत खूब
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
16-May-2023 08:58 AM
सुन्दर सृजन
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Abhinav ji
16-May-2023 06:59 AM
Very nice 👍
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