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अन्तर्गत




आज‌ दिनांक १७.५.२३ को‌ 
प्रदत्त स्वैच्छिक विषय के अन्तर्गत मेरी प्रस्तुति:

जादी के पंख लगा कर साथ साथ हम उड़ते जाएं:
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ग़ुलामी  दूर  हूयी भारत की,हमने आज़ादी पाई
कितने नौज़बां  शहीद हो गये,देख के धरती‌ थर्राई।

अश्रु भरी आंखों से मां ने श्रद्धांजलि तो अर्पित कीं,
अविरल आंसू की धारा से शिव को जलधारा अर्पित की ।

आज़ादी का जश्न मनाते हम आगे को क़दम बढ़ाएं,
आज़ादी के पंख लगा कर साथ साथ हम उड़ते जाएं।

अंग्रेजों से मुक्त हुए हैं पर मानसिकता  ठहरी है,
दीन-हीन पर हुक्म चलाने की जड़ें अभी भी ग़हरी हैं।

मानवता का कर व्यबहार सम्मान उन्हें देना‌ होगा,
आख़िर दमन करोगे कब तक‌ पीछे पछताना होगा।

प्रजातंत्र है भारत अब तो जनता को हैं अधिकार बहुत,
सत्ता उखाड़ देगी ये जनता, रखना है इसे ख़ुशहाल बहुत।

फ़िर चुनाव आयेंगे तुमको जवाब इन्हे देना होगा,
हाथ जोड़ माफ़ी मांग कर  क्रोध शान्त करना होगा।

बहतर होगा इस ग़रीब जनता का भी तो तुम ध्यान करो,
क्या अमीर और क्या ग़रीब है सबका उचित सम्मान करो।




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6 Comments

Abhinav ji

18-May-2023 08:40 AM

Very nice 👍

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आजादी को सही करें,,,, हुयी या हुई

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बेहतरीन सृजन

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