Arpit urmaliya

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द्वेष

इस दुखमय जीवन का प्रकाश,
नभ नील लता की डालो में,
उलझा अपने दुख से हताश |
कलिया जिनको मैं समझ रहा
वे काटे बिखरे आस पास ||

कितना बीहड़ पथ चला और,
पड़ रहा कही थक कर नितांत |
उन्मुक्त शिखर हस्ते मुझ पर,
रोता मैं निर्वासित अशांत ||

इस नियति नदी के आगे भीषण,
अभिनय की छाया नाच रही |
खोखली सून्यता में पतिपल,
असफलता अधिक कुलांच रही ||

पावस रजनी में जुगनु को,
ढूंढ पकड़ता मैं निराश |

उन ज्योति कणों का कर विनाश,

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3 Comments

Abhinav ji

18-May-2023 08:38 AM

Very nice 👍

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बेहतरीन सृजन

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Reena yadav

18-May-2023 03:46 AM

👍👍

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