द्वेष
इस दुखमय जीवन का प्रकाश,
नभ नील लता की डालो में,
उलझा अपने दुख से हताश |
कलिया जिनको मैं समझ रहा
वे काटे बिखरे आस पास ||
कितना बीहड़ पथ चला और,
पड़ रहा कही थक कर नितांत |
उन्मुक्त शिखर हस्ते मुझ पर,
रोता मैं निर्वासित अशांत ||
इस नियति नदी के आगे भीषण,
अभिनय की छाया नाच रही |
खोखली सून्यता में पतिपल,
असफलता अधिक कुलांच रही ||
पावस रजनी में जुगनु को,
ढूंढ पकड़ता मैं निराश |
उन ज्योति कणों का कर विनाश,
Abhinav ji
18-May-2023 08:38 AM
Very nice 👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
18-May-2023 07:53 AM
बेहतरीन सृजन
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Reena yadav
18-May-2023 03:46 AM
👍👍
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