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लेखनी कविता-21-May-2023

विषय- स्वैच्छिक  
शीर्षक-प्यार का शक्ल

तेरा सुरूर,
चढ़ रहा है धीरे-धीरे ,
तू गैर होकर भी ,
मेरा हो रहा है धीरे-धीरे !
यकीन है मुझे तु भी तड़पता होगा ,
बीच की दिवार से डरता होगा !
कही खुशियाँ जाहिर करने में
न रूठ जाऊँ ,(मैं)
एक अजनवी एहसास में, बस प्यार करता जाऊँ .....!
शायद इसी सोच में हर दिन उसका कटता होगा ,
रात बड़ी भारी तन्हाई में होगा !
हालांकि हम एक नहीं हो सकते ,
जीवन भर की खुशी नहीं दे सकते ,,
तो क्या हुआ -----
इश्क़ के आग में, रूह का मिलन होगा ,
दूरी में भी मीठा एहसास जगेगा ,
जो बात मेरे लबों पर आए ,
तेरे दिल में पहले ही दस्तक दे जाए ,
गर देखने का मन हो तेरा मुझे ,
छत पर चाँद देखने जाओ ,
मैं भी छत पर चाँद बन चाँद से
दीदार कर जाऊँगी !
एक आसमां के नीचे ,
तारों के छाँव में ,
चाँद देखेंगे दोनों ,
प्रेम के भाव में!
कहाँ है हम अलग ,
बस महसूस करो प्रिये ,
प्यार का प्यारा शक्ल !!
प्रेम प्रतिमूर्ति !
"प्रतिभा पाण्डेय"(स्वरचित 21/5/2023)



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6 Comments

madhura

02-Feb-2025 09:52 AM

v nice

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Milind salve

22-May-2023 08:08 AM

बेहतरीन अभिव्यक्ति

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