राजर्षि

रघुपति ने कहा, "तो बताओ, वह कौन है?"

नक्षत्रराय ने कह डाला, "वह ध्रुव है।"

रघुपति बोला, "ध्रुव कौन?"

नक्षत्रराय, "वह एक बालक है…"

रघुपाई बोला, "मैं जानता हूँ, उसे जानता हूँ। राजा की अपनी संतान नहीं है, उसे ही संतान की तरह पाल रहा है। पता नहीं, अपनी संतान को लोग किस तरह प्यार करते हैं, किन्तु पालित संतान को प्राणों से अधिक प्यार करते हैं, यह जानता हूँ। अपनी सम्पूर्ण संपदा की अपेक्षा राजा को उसका सुख अधिक प्रतीत होता है। मुकुट अपने सिर की अपेक्षा उसके सिर पर देख कर राजा को अधिक आनंद होता है।"

नक्षत्रराय आश्चर्य में पड़ कर बोला, "सही बात है।"

रघुपति ने कहा, "बात सही नहीं है, तो क्या है! क्या मुझे पता नहीं कि राजा उसे कितना प्यार करता है! क्या मैं समझ नहीं पाता! मुझे भी वही चाहिए।"

नक्षत्रराय मुँह फाड़े रघुपति की ओर देखता रहा। अपने मन में बोला, 'वही चाहिए।'

रघुपति ने कहा, "उसे लाना ही होगा… आज ही लाना होगा… आज रात ही चाहिए।"

नक्षत्रराय ने प्रतिध्वनि की भाँति कहा, "आज रात ही चाहिए।"

रघुपति ने कुछ देर नक्षत्रराय के चेहरे पर देख कर स्वर को धीमा करके कहा, "यह बालक ही तुम्हारा शत्रु है, जानते हो? तुम राज-वंश में जन्मे हो - कहीं से एक अज्ञात कुलशील बालक तुम्हारे सिर से मुकुट छीन लेने को आ गया है, यह पता है? जो सिंहासन तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था, उसी सिंहासन पर उसके लिए स्थान निर्धारित हो गया है, क्या दो आँखें रहते हुए भी यह नहीं देख पा रहे हो!"

नक्षत्रराय के लिए ये सारी बातें नई नहीं हैं। उसने भी पहले ऐसा ही सोचा था। गर्वपूर्वक बोला, "वह क्या और बताना पड़ेगा ठाकुर! क्या मैं इसे देख नहीं पाता!"

रघुपति ने कहा, "तब और क्या! उसे लाकर दे दो। तुम्हारे सिंहासन की बाधा दूर कर दूँ। ये कुछ पहर किसी तरह काट लूँगा, उसके बाद… तुम कब लाओगे?"

नक्षत्रराय - "अँधेरा हो जाने पर।"

रघुपति जनेऊ स्पर्श करके बोला, "अगर न ला पाए, तो ब्राह्मण का शाप लगेगा। वैसा होने पर, जिस मुँह से तुम प्रतिज्ञा बोल कर उसका पालन नहीं करोगे, तीन रातें बीतने के पहले ही उसी मुख के मांस को शकुनी (एक छोटी चिड़िया) नोच-नोच कर खाएँगे।"

सुनते ही नक्षत्रराय ने चौंक कर चेहरे पर हाथ फिराया - कोमल मांस पर शकुनी की चोच पड़ने की कल्पना उसे नितांत दुस्सह अनुभव हुई। रघुपति को प्रणाम करके वह जल्दी से विदा हो लिया। उस कमरे से प्रकाश में, हवा में और जन-कोलाहल में पहुँच कर नक्षत्रराय ने पुनर्जीवन पाया।

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