राजर्षि
रघुपति ने पूछा, "यह सब क्या हो रहा था?"
नक्षत्रराय ने सिर खुजलाते हुए कहा, "नाच हो रहा था।"
रघुपति ने घृणा से मुँह सिकोड़ते हुए कहा, "छी छी!"
नक्षत्र अपराधी के समान खड़ा रहा।
रघुपति ने कहा, "कल यहाँ से चल पड़ना होगा। उसकी तैयारी करो।"
नक्षत्रराय ने कहा, "कहाँ जाना होगा?"
रघुपति - "वह बात बाद में होगी। फिलहाल मेरे साथ बाहर निकल आओ।"
नक्षत्रराय ने कहा, "मैं यहाँ ठीक हूँ।"
रघुपति - "ठीक हूँ! तुम राजवंश में पैदा हुए हो, तुम्हारे सभी पूर्वज राज्य करते आए हैं। और तुम हो कि आज इस जंगली गाँव में सियार राजा बने बैठे हो और कह रहे हो, 'ठीक हूँ'।"
रघुपति के तीव्र वाक्यों और तीक्ष्ण कटाक्ष ने प्रमाणित कर दिया कि नक्षत्रराय ठीक नहीं है। नक्षत्रराय ने भी रघुपति के चेहरे के तेज में थोड़ा-बहुत उसी प्रकार समझा । वह बोला, "ठीक क्या, ऐसे ही हूँ। लेकिन और क्या करूँ? उपाय क्या है?"
रघुपति - "उपाय ढेरों हैं - उपायों का अभाव नहीं । मैं तुम्हें रास्ता दिखाऊँगा, तुम मेरे साथ चलो।"
नक्षत्रराय - "एक बार दीवानजी से पूछ लूँ।"
रघुपति - "नहीं।"
नक्षत्रराय - "मेरा यह सारा समान…"
रघुपति - "कुछ आवश्यक नहीं।"
नक्षत्रराय - "आदमी…"
रघुपति - "आवश्यकता नहीं है।"
नक्षत्रराय - "मेरे हाथ में इस समय पर्याप्त रुपए नहीं हैं।"
रघुपति - "मेरे हाथ में हैं। और अधिक बहाना-आपत्ति मत करो। आज सोने जाओ, कल सुबह ही चल पड़ना होगा।"
कह कर रघुपति किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना चला गया।
उसके अगले दिन भोर में नक्षत्रराय जागा हुआ है। बंदी-जन ललित रागिनी में मधुर गीत गा रहे हैं। नक्षत्रराय ने बाहरी भवन में आकर खिड़की से बाहर देखा। पूर्वी तट पर सूर्योदय हो रहा है, अरुण रेखा दिखाई पड़ रही है। दोनों किनारों के वृक्ष-समूहों के बीच से, छोटे-छोटे गाँवों के सिवाने के निकट से अपनी विपुल जल-राशि के साथ ब्रह्मपुत्र अबाध बहता चला जा रहा है। प्रासाद की खिड़की से नद के किनारे एक छोटा कुटीर दिखाई पड़ रहा है। एक स्त्री आँगन में झाड़ू दे रही है - एक पुरुष उसके साथ एक-दो बातें करके सिर पर चादर बाँध कर, बाँस की लंबी लाठी के अगले भाग में पोटली लटका कर निश्चिन्त मन से कहीं निकल गया। श्यामा और दोएल सीटी बजा रहे हैं, बेने बोऊ विशाल कटहल वृक्ष के घने पत्तों के बीच बैठी गाना गा रही है। खिड़की में खड़े होकर बाहर की ओर देखते हुए नक्षत्रराय के हृदय से एक गहरी लंबी निश्वास निकली, उसी समय पीछे से रघुपति ने आकर उसे छुआ। नक्षत्रराय चौंक उठा। रघुपति ने कोमल-गम्भीर स्वर में कहा, "यात्रा की पूरी तैयारी हो गई!"