Kiran Mishra

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लेखनी कहानी -23-May-2023

लेखनी- विषय- स्वैच्छिक दिनांक- 23-5-2023 शीर्षक- ठहर जाते तिजोरियों में-

ठहर जाते तिजोरियों में तो कोई ग़लत न था यूँ मुह मोड़ कर न जाते तो कोई ग़लत न था

तुम कैसे तोड़ दिए दिल को यूँ बेदर्दी की तरहा ज़िन्दगी तेरा यूँ संवारना भी कोई ग़लत न था

ऐलान तुमने कर दिया ज़ज़्बात-ए-ज़ब्त का अग़र मज़ाक इक हद में हो कोई ग़लत न था

रुपया आये थे जाड़े में मग़र गर्मी में‌ जा रहे तुम मेरे पास ठहर जाते तो कोई ग़लत न था

सियासत से आम जनता में मची है खलबली रहते सबकी तिजोरियों में तो कोई ग़लत न था

बस मेहमान हो दो माह के फ़ैसला न पच रहा धक्क से जिगर का होना तो कोई ग़लत न था

तुम थे तो उन्नत हिम्मत और सत्कार बहुत था तुम्हें घर में छुपा के रखना तो कोई ग़लत न था॥

किरण मिश्रा# निधि#

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

24-May-2023 08:00 PM

बहुत खूब

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Abhinav ji

24-May-2023 09:34 AM

Very nice 👍

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Reena yadav

24-May-2023 06:26 AM

👍👍

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