स्थिर कुछ भी नही रहता है जग में
स्थिर नही रहता है सदा ही सुख के दिन
दुःख के दिन भी एक दिन टल जाता है
कठिनाइयों को हंसकर जो गले लगाता है
किस्मत एक दिन उसकी अवश्य बदल जाता है।
वक्त की दौर को हम परख ही नही सके
समय अपना हिसाब कर ही लेता है
पर वक्त का दौर यूं ही गुजर जायेगा
जहां आज मैं हूं,वहां कल कोई और होगा
स्थिर कुछ भी नही रहता है जग में।
हम अपना समझतें समझतें किसी और को
अपने मन की चाहत में बसा लेते है
कोई मेरी बातों को समझता है
तो कोई समझना ही नही चाहता है।
रोज सुबह जो सूरज उगता है
शाम होते ही वो भी ढल जाता है
मौसम चाहे कोई भी हो
एक दिन जरूर बदल जाता है
स्थिर कुछ भी नही रहता है जग में।
हम पर दोस्ती का दिखावा जो करते थे
एक दूसरे के प्रति आदर भाव भी था
इतना ही नही सज्जनों
प्रेम की पवित्रता भी झलकती थी
जब दुःखो का पहाड़ टूटा हम पर
तब हमसें बात करने का
उनका अंदाज ही बदल गया
स्थिर कुछ भी नही रहता है जग में।
नूतन लाल साहू
ऋषभ दिव्येन्द्र
26-May-2023 12:30 PM
कमाल का लिखा
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Haaya meer
26-May-2023 09:34 AM
Nice
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