नारी
कोई कहता है मैं बेचारी हूँ तो
कोई कहता है मैं त्याग और
ममता की मूरत हूँ ,
कोई कहता है मैं जगजननी की सूरत हूँ
मैं कौन हूँ, मुझे ही नही पता
अब मुझे खुद समझ नही आता
समाज तो बदल रहा है
पर लोगों की नजरे वही है,
कोई बदलाव मुझे नज़र नहीं आता
घर परिवार को संभालने का
काम अगर चुनती हूँ
तो ये काम किसी काम का नही लगता
बाहर जाकर कमाऊं अगर दफ्तर में
तो सुनती हूँ बच्चों की
परवरिश करना मुझे नहीं आता
दिन ढलता है, रात आती है
पर मेरे हिस्से में दो पल भी
आराम क्यों नहीं आता
प्रकृति का ये अनोखा चक्र
अब मेरी समझ नहीं आता
सबको खुश करने में सारी
ज़िन्दगी गुज़ारती हूँ,
फिर भी मेरी इच्छाओं का ध्यान
क्यों किसी को नहीं आता,
जिन बच्चों की एक खुशी के लिए
सौ दर्द उठाती हूँ,
उनसे ही सुनती हूँ कि
माँ तुम रहने दो
तुम्हारी कुछ भी समझ नहीं आता,
छुट्टियां तो आती हैं
साल भर में न जाने कितनी,
पर जो मुझे सुकून दे
ऐसा कोई त्योहार नहीं आता,
अब ये खेल मुझे समझ नहीं आता...
सीताराम साहू 'निर्मल'
28-May-2023 11:59 AM
बहुत सुंदर
Reply
Abhinav ji
28-May-2023 08:27 AM
Very nice 👍
Reply
Shashank मणि Yadava 'सनम'
28-May-2023 08:02 AM
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति
Reply