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छोटे-छोटे सवाल (उपन्यास): दुष्यन्त कुमार

इंटरव्यू से पहले (अध्याय-1)सत्यव्रत ठीक दस बजे उस कमरे में पहुँचा जहाँ इंटरव्यु के लिए और बहुत-से उम्मीदवार जमा थे। यद्यपि वह आर्यसमाज मन्दिर से साढ़े नौ बजे ही चल दिया था, फिर मी मन में थोड़ा चिन्तित था। वक्त का सही अनुमान न लगा पाने के कारण उसे लगता था कि कहीं पाँच-सात मिनट का विलम्ब न हो गया हो। किन्तु कमरे में पहुंचकर उसे सान्त्वना मिली। लोग एक-एक, दो-दो की टुकड़ी में बँटे हुए बातचीत कर रहे थे और ऐसा नहीं लगता था कि इंटरव्यू शुरू हो गए हैं।"


क्यों साहब, जब तक हम लोगों का इंटरव्यू शुरू हो, तब तक क्यों न हम एक-दूसरे का परिचय ही हासिल कर लें ?" ठाकुर ने बेंच से उठकर दोनों हाथ आगे फैलाते हुए एक्टराना अन्दाज में कहा और फिर खुद अपना परिचय देते हुए बोला, "बन्दे का नाम है राजेश्वर ठाकुर और असिस्टेंट टीचरी का उम्मीदवार हूँ।"बात करने का अन्दाज और बात का वजन दोनों बराबर उतरे। हिन्दु इंटर कॉलेज, राजपुर के उस कमरे में पन्द्रह-बीस बेतरतीब-सी डेस्कों के पीछे लगी बेंचों पर बैठे उम्मीदवारों में जैसे जिन्दगी की हलचल दौड़ गई। 


अब तक खामोश-से बैठे प्रतीक्षाग्रस्त उम्मीदवार इस बात के प्रति ज्यादा सतर्क थे कि कहीं डेस्कों की दावात की सूखी स्याही का कोई धब्बा उनके साफ़ धुले कपड़ों पर न लग जाए। पर अब उन्हें लगा कि वक्त बातचीत करके भी गुज़ारा जा सकता है।सत्यव्रत कोने में पड़ी एक बेंच पर बैठ गया। एक सिरे से खड़े होकर सबने अपना परिचय देना शुरू किया।


"रामस्वरूप पाठक नाम है, के.जी. कॉलेज में हिन्दी में सेकंड डिवीजन में एम.ए. किया है, हल्दौर से आया हूँ।"मेरा नाम मुरारीमोहन माथुर है, मैंने भी हिन्दी में एम.ए.किया है, मैं झालू का रहनेवाला हूँ। और भी चार उम्मीदवारों ने खड़े हो-होकर अपना परिचय दिया। सबने हिन्दी में एम.ए. किया था और सब सेकंड डिवीजन में पास हुए थे। ये लोग हिन्दी की लेक्चररशिप के उम्मीदवार थे

।सहसा राजेश्वर ने कहा, "क्यों साहब, क्या एम.ए. हिन्दी में थर्ड डिवीजन नहीं होती ?"असिस्टेंट टीचरी के अधिकांश उम्मीदवार इस बात पर मुस्करा दिए। कोई उत्तर न पाकर असरार ने डेस्क पर आगे झुकते हुए कहा, "एम.ए. की बात तो साहब, ये प्रोफ़ेसर लोग जानें, पर बी.ए. में थर्ड डिवीजन जरूर होती है और मुझे थर्ड डिवीजन में बी.ए. पास करने का फ़ख़्र हासिल है।"इस पर श्रोत्रिय नाम के एक अन्य उम्मीदवार ने भी दूसरे शब्दों में यही बात दोहराई।


फिर जो परिचय का औपचारिक दायरा टूटा और डिवीजनों की बात चली तो मालूम हुआ कि असिस्टेंट टीचरी के दो पदों के लिए आमन्त्रित छह में से पाँच उम्मीदवार थर्ड डिवीजनर हैं और अनट्रेंड भी। राजेश्वर ठाकुर ने तो बी.ए. तीसरे साल सप्लीमेंटरी में पास किया था। पर सर्वसम्मति से सभी उम्मीदवारों ने उसे भी थर्ड डिवीज़नस में ही गिना । फिर एक-दूसरे को प्रशंसा और प्रेम की दृष्टि से देखकर सबने आत्मसन्तोष का अनुभव किया।तभी अचानक राजेश्वर ने कोनेवाली एक बेंच पर अकेले बैठे हुए सत्यव्रत से उसकी डिवीजन पूछी तो फिर कई चेहरों से सन्तोष का भाव मिट गया और बेसब्री से सब उसकी ओर देखने लगे। 


सांवला सा रंग, उभरे से नाक-नक्श, दुबला-पतला और झेंपू- सा वह युवक मुश्किल से चौबीस साल का होगा। घर की कती मोटी खादी के कपड़े और सिर पर एक-एक अंगुल के बाल, जिनके बीचोंबीच खड़ी छोटी-सी चोटी में गाँठ लगा दी गई थी। संक्षेप में सत्यव्रत सबको शास्त्री किस्म का नवयुवक लगा। और जब उसने बी.ए. में अपनी सेकंड डिवीजन बतलाई तब तो सभी ने उसकी और ऐसे घूरा जैसे उसने कोई भारी अपराध किया हो, अथवा वह झूठ बोल रहा हो।"कॉलेज तो फटीचर ही लगता है। न बिजली है, न पंखे । डेस्क भी बाबा आदम के जमाने के हैं।" लेक्चररशिप के उम्मीदवार पाठक ने कहा। दरअसल सत्यव्रत की डिवीजन का पाठक वग़ैरा पर कोई असर न पड़ा था।मगर असिस्टैंट टीचरी के उम्मीदवारों ने पाठक की बात को अहमियत नहीं दी । 


असरार की बराबर बैठे केशवप्रसाद को सत्यव्रत के प्रति अत्यधिक सहानुभूति उमड़ आई थी। उसके पास जाकर वह बोला, "आपने सेकंड डिवीजन में बी.ए. किया, फिर आप यहाँ सड़ने के लिए क्यों आ गए ?"सत्यव्रत इस प्रश्न का कोई उत्तर न दे सका। उनके सांवले कपोलों और निश्छल आँखों में शर्म और असमर्थता का-सा भाव दौड़ गया।श्रोत्रिय ने फिर पूछा, "क्या परसेंटेज था बी.ए. में आपके मार्क्स का ?""उनसठ प्रतिशत। सत्यव्रत ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया। फिर उसने बताया, "अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य विषय लेकर मैंने बी.ए. किया है, इसी वर्ष । संस्कृत में विशेष योग्यता मिली है।



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