छोटे-छोटे सवाल (उपन्यास): दुष्यन्त कुमार
"श्रोत्रिय और केशवप्रसाद की जिज्ञाना समाप्त हुई। सत्यव्रत के पास बी.ए. में अंग्रेजी न होने की बात सुनकर शायद और लोगों को भी कुछ राहत मिली क्योंकि उनके चेहरे पर फिर वही भाव लौट आया था।मगर राजेश्वर ठाकुर ने विचारपूर्वक निर्णय दिया, "आजकल संस्कृत में 'डिस्टिन्कशन' का कोई मतलब नहीं होता, सत्यव्रतजी। इट इज ए डेड लैंग्वेज।" फिर कुछ सोचते हुए बोला, "क्या आपको इंग्लिश बिलकुल नहीं आती ?"सत्यव्रत ने कहा, "जी, इस वर्ष केवल अंग्रेजी में बी.ए. करने की सोच रहा हूँ ।
वैसे ...""तब तो आपने नाहक तकलीफ़ की।" राजेश्वर ने अफ़सोस जाहिर किया। उसके होंठ विचक गए और कन्धे ऊपर को उचककर अपनी जगह पर आ गए। फिर मन-ही-मन अपने सफ़ेद पेंट और बुश्शर्ट की सफेदी की तुलना जैसे सत्यव्रत के अपेक्षाकृत कम सफ़ेद कपड़ों से करता हुआ बोला, "फिर भी क्या हर्ज़ है लक ट्राइ करने में !
वैसे आपकी 'क्वालिफिकेशन्स' कुछ सूट नहीं करती हैं।" सत्यव्रत ने कोई प्रतिवाद नहीं किया।मगर राजेश्वर की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि हिन्दी की लेक्चररशिप का उम्मीदवार पाठक बोल उठा, "माफ़ कीजिए ठाकुर साहब, आप अपनी 'डिग्री' वग़ैरा लेकर आए हैं न?""जी, हाँ।""और मार्क-शीट ?""वह भी है। दिखाऊँ आपको ?" राजेश्वर ने इस आकस्मिक प्रश्न को पूरी तवजह देते हुए पूछा।"जी नहीं। बेहतर हो, आप खुद ही उन्हें एक बार देख लें।" पाठक ने व्यंग्य किया।“जी!" राजेश्वर ने अचकचाकर कहा, और इधर-उधर लोगों की प्रतिक्रिया देखने लगा कि कितने लोग इस व्यंग्य को समझ सके हैं।
सत्यव्रत के मुख पर निश्छल शान्ति थी। पर हिन्दी की लेक्चररशिप के सारे उम्मीदवार होंठों की कोरों में मुस्करा रहे थे।असिस्टैंट टीचर-पद के उम्मीदवारों की प्रतिक्रिया पढ़ने का उसमें साहस नहीं हुआ। धड़कते दिल पर कृत्रिम आश्चर्य-मिश्रित झुंझलाहट का आवरण चढ़ाकर वह फिर बोला, "आपका मतलब मैं समझा नहीं।"इस बार बात पाठक के बराबर बैठे हुए हिन्दी की लेक्चररशिप के ही दूसरे उम्मीदवार मुरारीमोहन माथुर ने पकड़ ली, बोला, "दरअसल आप नहीं समझे होंगे, क्योंकि पाठकजी ने जरा बारीक बात कह दी।
दरअसल उनका मंशा यह था कि सत्यव्रतजी की 'क्वालिफिकेशन्स' की बजाय अगर आप अपनी 'क्वालिफिकेशन्स' पर गौर फरमाएँ तो शायद आपको अपनी 'लक ट्राई' करने की भी जरूरत महसूस न हो।माथुर का इशारा राजेश्वर की सप्लीमेंटरी की तरफ़ था। मगर ये 'लक ट्राई' का खटका ऐसा हुआ कि सारे उम्मीदवार एकबारगी हँस दिए। सिर्फ सत्यव्रत नहीं हँसा। उसके शान्त, पवित्र-बौद्ध-मुख पर एक करुणा-सी उभर आई। उसे शायद लगा कि ठाकुर पर अत्याचार हो गया। और वह उसके पक्ष में कुछ कहने की सोचे कि तभी राजेश्वर खुद ही बोल पड़ा, "आप आखिर कहना क्या चाहते हैं?"माथुर ने फिर उसी का वाक्य दोहरा दिया,