छोटे-छोटे सवाल (उपन्यास): दुष्यन्त कुमार
श्रोत्रिय ने ठाकुर के पैकेट से सिगरेट निकालते हुए कहा, "अपने-अपने ढब की बात है भई ! हमारे स्कूल में तो 'एक्सपलेनेशन काल' हो गया था इसी बात पर एक टीचर का।" और उसने सिगरेट सुलगा ली। एक सिगरेट असरार ने ली। प्रोफ़ेसरी के उम्मीदवारों में से किसी ने सिगरेट नहीं ली हालांकि वे पीते थे। ठाकुर ने सबके सामने पैकेट घुमाया पर सत्यव्रत के सामने तक बढ़ाकर भी हाथ खींच लिया; बोला, "माफ़ कीजिए, आप तो पीते ही नहीं होंगे?""जी हाँ, मैं नहीं पीता।" सत्यव्रत ने कहा और सरलता से मुस्करा दिया।
सबके चेहरों पर पवित्र-सी हँसी फैल गई। वातावरण का बोझ कुछ हल्का-सा हुआ। लेक्चररशिप के उम्मीदवारों ने एक-दूसरे की ओर देखा। धीरे से पाठक माथुर से बोला, "तुम भी पियो न !"माथुर बोला, "क्या आफ़त है, यार ! भाग्य का निर्णय हो ले, उसके बाद गूंगे की दुकान पर चलकर चाय भी पिएंगे और सिगरेट भी।"पाठक आश्वस्त हो गया। सिगरेट पीने की प्रबल इच्छा को मारने के लिए उसने दोनों हाथ उठाकर एक जमुहाई ली और साँस छोड़ते हुए बोला, "ओ...म।"अचानक ही श्रोत्रिय और असरार उछलकर खड़े हो गए और डेस्क से रगड़कर उन्होंने सिगरेटें बुझा दीं।
उन्हें मास्टर उत्तमचन्द की झलक मिल गई थी। और लोग भी उठ खड़े हुए। राजेश्वर भी खड़ा हो गया। मगर उसने सिगरेट नहीं बुझाई। मुंह में धुआँ भरे वह मास्टर उत्तमचन्द की नजरें दूसरी ओर घूमने की प्रतीक्षा करने लगा।उत्तमचन्द ने कहा, "आप शायद 'स्मोकिंग' कर रहे थे?" उनकी वाणी में मिठास पहले से कुछ कम थी। बोले, "मुझे बताएँ, कौन साहब स्मोकिंग कर रहे हैं?"सब चुप रहे किन्तु राजेश्वर ने मुँह का धुआँ बाहर निकालते हुए कहा, "कहिए
एक तो मैं था, और दूसरे असरार साहब और सोतीजी !"असरार और श्रोत्रिय दोनों को बुरा लगा, मगर चुप रहे। उत्तमचन्द बोले, "क्या आपको मालूम नहीं कि 'कॉलेज-प्रीमीसेज़' में सिगरेट नहीं पीनी चाहिए?"राजेश्वर ने कहा, "यहाँ कोई बोर्ड तो नहीं लगा है।"इसके बाद राजेश्वर के साथ सभी की प्रश्नवाचक दृष्टियाँ मास्टर उत्तमचन्द के चेहरे पर जा लगीं।मास्टर उत्तमचन्द के माथे पर दो बारीक बल पड़ गए। उन्होंने गौर से राजेश्वर की ओर देखा ।
पेंसिल निकालकर तीनों नाम नोट किए और तुरन्त शान्त होकर बोले, "अब इंटरव्यू शुरू होनेवाला है। हेड क्लर्क आप साहबान में से एक-एक का नाम पुकारेंगे। पहले हम असिस्टेंट टीचर्स का इंटरव्यू लेंगे, फिर हिन्दी-लेक्चरर्स का। इंटरव्यू के बाद भी कोई साहब यहाँ से जाएँ नहीं।"और इतना कहकर वह तेजी से कुरता फरफराते दरवाजे से बाहर निकल गए और फिर एक ही क्षण बाद लौटकर पुनः प्रवेश करते हुए बोले, "आप साहबान एजुकेटेड लोग हैं, और यह कॉलेज एजुकेशन का मन्दिर है। आपका फर्ज है कि इसकी 'सैन्कटिटी' की रक्षा करें। आप सोचें कि यह स्थान सिगरेट पीने की जगह नहीं हो सकता।"और मास्टर उत्तमचन्द फिर बाहर चले गए। उन्होंने क्या कुछ नहीं कहा था। मगर उनकी आवाज में लेश-मात्र भी कड़वाहट नहीं थी। आँखें बन्द करके कोई सुनता तो उनके वाक्य किसी जैन सन्त के प्रवचन प्रतीत होते।उत्तमचन्द का सबसे ज़्यादा प्रभाव श्रोत्रिय पर पड़ा था। उनके जाते ही वह बोला, "नाम नोट करके ले गया है।" और एक आशंका से उसका दिल धड़क उठा।राजेश्वर बोला, “अरे सैकड़ों फिरते हैं इस जैसे ! इसकी औकात क्या है ? मेम्बरों के पीछे दुम हिलाता फिरता है कुत्ते की तरह।"असरार ने कहा, "औकात तो बहुत है इसकी, ठाकुर साहब ! कॉलेज का बिना ताज का बादशाह है। प्रिंसिपल तो नाम मात्र का होता है यहाँ। असलीप्रिंसिपल यही है। स्याह करे या सफ़ेद, पूरा सियासत-दाँ है।""तब तो बड़ा बुरा हुआ आप लोगों के हित में।" केशव ने उन सबके अन्धकारमय भविष्य की कल्पना में अपने उज्ज्वल भविष्य को निहारते हुए कृत्रिम सहानुभूति से कहा।श्रोत्रिय हाँ में 'हाँ' मिलाने ही जा रहा था कि असरार ने फिर कहा, "नहीं जी, एपाइंटमेंट में इसका क्या हाथ ? हाँ, एपाइंटमेंट के बाद अलबत्ता तकलीफ़देह साबित हो सकता है।"राजेश्वर ने कहा, "बहुत देखे हैं इस जैसे ! एक बार एपाइंटमेंट लेटर मिल जाए, फिर देखना। चूरन बनाकर फाँक जाऊंगा साले को। हमारी सियासत नहीं देखी अभी..."और तभी बहुप्रतीक्षित क्लर्क, पवन बाबू लगभग लुड़कते हुए-से कमरे में आए। बातचीत का सिलसिला रुक गया। सब उनकी ओर देखने लगे। खासे मजेदार आदमी थे। लम्बाई-चौड़ाई एक-सी थी। गोलमटोल, छोटा कद। हाथ में एक फेहरिस्त लिए थे, जिसमें उम्मीदवारों के नाम लिखे थे। कमीज और नेकर पहन रखी थी। नाक पर आस्तीन का घिस्सा लगाते हुए पवन बाबू ने नेकर की जेब से लाल-नीली पेंसिल निकाली और उम्मीदवारों की हाजिरी लेनी शुरू की।-मुरारीमोहन माथुर !-यस प्लीज।-रामस्वरूप पाठक!-यस प्लीज।फिर पांडे, निगम, गिरीश, हरीश, रोहतगी, वर्मा सबका नम्बर आया और सब, जो अब तक चुप थे, 'यस प्लीज़' बोलते गए। फिर असिस्टैंट टीचर्स की बारी आई।-सुरेशचन्द्र सोत्री!-यस सर।-केशवपरसाद।-यस सर।-असरार अहमद!-यस प्लीज।-राजेश्वर ठाकुर।-यस। -ठाकुर ने न 'सर' लगाया, न 'प्लीज़' । हथौड़े जैसा 'यस' पवन बाबू के सिर पर दे मारा। पवन बाबू सहसा हाजिरी लेते लेते ठिठके और चश्मे में से दोनों आँखें उसकी ओर धमकाई, फिर और सबको उँगलियों पर गिनते हुए बोले, "सब प्रिजेंट हैं।"पवन बाबू हाजिरी लेकर चलने को हुए तो श्रोत्रिय ने पुकारकर कहा, "मास्साहब, एक मिनट। अँऽऽ, कुल कितने कैंडीडेट बुलाए गए हैं असिस्टैंट टीचरी के लिए ?""जितने यहाँ प्रिजेंट हैं।" पवन बाबू ने ऐनक को ऊपर उठाते हुए कहा।"क्या इतने ही लोगों ने एप्लाइ ??