छोटे-छोटे सवाल (उपन्यास): दुष्यन्त कुमार
यही लो। आपने हिन्दी के प्रोफेसरों में पाठक को चुना। मैंन्ने चूं-चकर करी ? भगवान जान्नै है मेरे साले की चिट्ठी धरी है मेरी जेब में। उनने रोहतगी के लियो लिक्खा था। पर मैंन्ने करा आपका विरोध ?" और इतना कहकर गनेशीलाल जेब से चिट्ठी निकालने लगे।किन्तु उनसे पहले ही चौधरी नत्थूसिंह ने अपनी जेब से एक चिट्ठी निकालकर लालाजी के सामने धर दी।
बोले, "चिट्ठी क्या मेरे पास नहीं आई ! वह जो वर्मा था, मेरे बड़े लड़के की बहू का सगा मुमेरा भाई था। बल्कि मेरे यहाँ ही ठहरा था। कित्ती हिजो होगी मेरी, लड़के की ससुराल में। पर मैंन्ने ही क्या कहा ? कायदे की बात पै सबको झुकना पड़ता है।"लालाजी को इन चिट्ठियों का पता पहले ही लग चुका था। उनके पास तो इस मरतबा कोई चिट्टी नहीं आई, पर पाठक के लिए डिप्टी साहब का जबानी सन्देश उन्हें जरूर मिला था।
पाठक डिप्टी साहब का भतीजा था, और डिप्टी साहब की अदालत में लालाजी के भट्टे से सम्बन्धित मामले रोजाना जाते ही रहते थे इसलिए जान-पहचान भी गाढ़ी थी। अतः उनका काम करना ही था। जब उन्हें उत्तमचन्द ने बताया कि गनेशीलाल और चौधरी नत्थूसिंह के पास भी हिन्दी के प्रोफेसर के लिए उनकी रिश्तेदारी से चिट्ठियाँ आई हैं तो लालाजी ने उत्तमचन्द की ही मदद लेकर सात और मेम्बरों को गाँठना शुरू किया।
और भगवान की दया से बात बन गई। डिप्टी साहब की अदालत में किसे काम नहीं पड़ता ? इसलिए पाठक का नाम आते ही सात हाथ एकदम उठ गए और आठवाँ हाथ लालाजी का। हिन्दी के लेक्चरर के लिए निर्विरोध चुनाव हो गया पाठक का।अतः दोनों चिट्ठियाँ बिना पढ़े ही लौटाते हुए लालाजी बोले, "चिट्ठी-पत्री तो आवै ही हैं, भय्या। पर हमें तो न्याय करना है। हमें तो ऐसा आदमी लेना है जो हमारे बच्चों कू चार अच्छी बातें सिखावै और आदमी बनावै। अब पाठक को ही लो। मेरा उससे क्या वास्ता, क्या रिस्ता ? वो ब्राह्मन, मैं बनिया। पर मुझे उसकी सिच्छा सुद्ध लगी।
पंचों की राय मिली और हमने उसे ले लिया।"गनेशीलाल और चौधरी नत्थूसिंह दोनों पाठक की शिक्षा की हकीकत समझते थे। पर मौक़ा कुछ कहने का नहीं था। अब तो झगड़ा असिस्टेंट टीचर्स के चुनाव का था। गनेशीलाल ने बात शुरू की। बोले, "बीती ताही बिसार दे-ऐसा बुजुर्गों ने कहा है। परन्तु लालाजी, न्याय के विरुद्ध जो बात होवै, सो मुझसे बरदास्त नहीं होती। अब इनसे पुच्छो। चौधरी साहब खामखाँ उस मुसलमान्न लौंडे को मास्टर रखना चाहें हैं। मैं तो कहूँ कि हिन्दू कॉलिज नाम रखकै अगर आप इसमें मुसलमान्नों कू भरै हैं तो कहाँ रयी आपकी मरयादा, कहाँ रया धरम ?
क्या सारे हिन्दू लौंडे मर गए?"गनेशीलाल ने अपने हिसाब से बात को सैद्धान्तिक मोड़ देकर धर्म के नुक्ते पर लाकर छोड़ दिया। वह जानते थे कि यह लालाजी का मर्म स्थान है। फिर बोले, "वह सोत्ती बच्चा है, बाह्मन है, पास का है।