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नशा

खुशियों को है डसने वाली,

उसका डंक भुला बैठे।
देखा-देखी सबसे छुपकर,
बस एक कश लगा बैठे।

एक कश से दो कश हो गए,
फिर लत ठहर गई ऐसी।
कश की सखी खैनी जुड़ गई,
आई बीमारी कैसी।

खांसी से शुरुआत हो गई,
गले में पड़ गया छाला।
खांस-खांस कर थूक उगलता,
रोगी है टीबी वाला।

दो दिन मर्ज से पीड़ित गुजरे,
दो गुजरे पछताने में।
चार दिन की है जिंदगानी,
कब सुकूं आशियाने में।

धूम्रपान की लत है जिसको,
घर बीमारी फैलाता।
सांस फूलना खांसी होना,
अपनी पीड़ा दे जाता।

शराब तंबाकू बीड़ी मद,
बीमारी फैलाते हैं।
क्यों खाते इंसान चाव से,
मरते दम पछताते हैं।

जीवन मत बर्बाद करो "श्री", 
क्यों परिवार रुलाते हो।
नशे की जकड़न असमय मृत्यु,
काल ग्रास बन जाते हो।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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4 Comments

Punam verma

01-Jun-2023 11:36 PM

Very nice

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बहुत सुन्दर

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Abhinav ji

01-Jun-2023 08:34 AM

Very nice 👍

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