Natasha

Add To collaction

छोटे-छोटे सवाल (उपन्यास): दुष्यन्त कुमार

मन में असाधारणत्व का अनुभव करते हुए सौजन्य के नाते उसने पूछा, "और आप?""मैं भी यहीं मास्टर हूँ। उस नवयुवक ने अपने बारे में बताते हुए कहा, "मेरा नाम जयप्रकाश है।"अब सत्यव्रत के विस्मित होने की बारी थी। उसका असाधारणत्व घट गया था और वह 'आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई' वाली औपचारिक मुद्रा में खड़ा जयप्रकाश की ओर देख रहा था कि तभी नजीबाबाद जानेवाली गाड़ी की सीटी गूँज उठी, और भक-भक करती हुई गाड़ी के चलने की आवाज सुनाई दी। सत्यव्रत औपचारिकता निभाने से बच गया।स्टेशन से बचे-खुचे मुसाफ़िर और घूमने आए हुए लड़के शहर की ओर लौट पड़े।


 गूँगे के नौकर ने चिमनी साफ़ करके लालटेन जला दी।जयप्रकाश ने जेब से बंडल निकालकर एक और बीड़ी सुलगाते हुए कुछ रुककर सत्यव्रत से कहा, "वापस लौटना हो तो आइए। साथ ही रहेगा।"“जी हाँ, चलिए।" सत्यव्रत ने तुरन्त सहमत होते हुए कहा और दोनों एक-दूसरे से हुए इस आकस्मिक परिचय के विषय में सोचते शहर की ओर चल दिए।सड़क सुनसान हो चुकी थी। कोई भटका हुआ पंछी पंख फड़फड़ाता हुआ सिर से गुजर जाता तो दोनों चौंककर पीछे देखने लगते थे। गूँगे की दुकान में लटकी हुई लालटेन की रोशनी बहुत मद्धिम हो गई थी और कॉलेज तथा रेलवे स्टेशन की इमारतें अँधेरे में डूबने लगी थीं। सिगनलों की लाल-लाल बत्तियाँ खेतों की बाड़ से झाँकती हुई आँख-मिचौनी खेल रही थीं। दूर जाते हुए विद्यार्थियों के जोरदार कहकहे, टेलीफ़ोन के खम्भों से उभरती हुई भायँ-भायँ की ध्वनियाँ और छोटे तालाब पर टिटहरियों की प्यासी आवाजें, सन्नाटे के तारों पर मरी हुई चमगादड़ों-जैसी टँगी थीं।तभी अचानक सत्यव्रत ने पूछा, "भाईजी, ये कॉलेज से यहाँ तक सड़क के साथ-साथ चले आनेवाले खेत, क्या कॉलेज के ही हैं?


"जयप्रकाश तुरन्त सजग हो गया। सत्यव्रत के आत्मीय सम्बोधन को उसी आत्मीयता से स्वीकार करते हुए उसने कहा, "जी हाँ, मास्टर साहब ! ये सब कॉलेज की ही सम्पत्ति हैं।""क्या ये खेल के मैदान हैं?" सत्यव्रत ने अगला प्रश्न किया और अँधेरे में डूबे विशाल मैदानों की ओर देखने लगा। उत्तर में जयप्रकाश एक क्षण ठिठककर मौन हो गया जैसे वीणा के तार झनझनाकर सहसा रुक गए हों। उसके मन में आया कि वह कहे, 'काश! ये खेल के मैदान होते!'सत्यव्रत ने भी प्रश्न दोहराया नहीं। सोचा, ये खेल के मैदान ही हो सकते हैं। मगर जयप्रकाश सोच रहा था कि इन खेतों को खेल के मैदान में कैसे बदला जा सकता है!कॉलेज की इस सौ बीघा जमीन में लाला हरीचन्द ने पिछले साल से खेती शुरू कराई थी और उसका नाम रखा था 'कॉलेज-कृषि योजना' ।


 लालाजी के शब्दों में यह योजना उनके वर्षों के चिन्तन का निचोड़ थी और इसके साथ उनकी बड़ी-बड़ी आशाएँ जुड़ी थीं। फलस्वरूप जिस महत्त्वाकांक्षा और उत्साह से उन्होंने कृषि-योजना की बुनियाद डाली, उसी उत्साह और उल्लास से उन्हें इसमें छात्रों एवं अध्यापकों का सहयोग भी मिला। इंटर और हाईस्कूल की कक्षाओं में पढ़नेवाले गाँव के बड़े-बड़े लड़के पूरी लगन से कृषि-योजना में जुट गए और देखते-ही-देखते उन्होंने बड़े-बड़े बंजर मैदानों को उपजाऊ जमीन में बदल दिया।


लाला हरीचन्द विद्यार्थियों की इस श्रम-निष्ठा से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने प्रसन्न होकर उन्हें 'श्रम-सेवकों' की उपाधि दी थी। यही नहीं, मैनेजिंग कमेटी की एक विशेष बैठक में उन्होंने कृषि-योजना की मौलिकता और उसके पीछे निहित गांधीवादी कार्य-प्रणाली का विस्तार से विश्लेषण करते हुए योजना के संचालक मास्टर उत्तमचन्द और उनके सहकर्मी छात्रों की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी और वाइस-प्रेसीडेंट चौधरी नत्थूसिंह एवं सेक्रेटरी गनेशीलाल के परामर्श से योजना में विशेष रुचि लेने के लिए उन्होंने गाँवों के बीस-पच्चीस बड़े-बड़े लड़कों को कॉलेज की ओर से अनेक सुविधाएँ दिलवा दी थीं; जैसे, फ़सल की बुवाई और कटाई के दिनों में अनुपस्थित रहने के बावजूद कक्षाध्यापकों के रजिस्टरों में उनकी हाजिरी लगती थी।


 गैरहाजिरी का कोई जुर्माना उन्हें नहीं देना पड़ता था और कृषि-योजना के बहाने वे जब चाहें, कॉलेज छोड़कर कहीं भी आ-जा सकते थे।इस प्रकार योजना की उपादेयता और इन कुछ वरदानों के कारण गाँवों के लड़कों में कृषि-योजना शीघ्र ही लोकप्रिय हो गई। कुछ ही दिनों के अन्दर-अन्दर मास्टर उत्तमचन्द के कृषि-योजना-रजिस्टर में श्रम-सेवकों की संख्या दो सौ तक पहुँच गई और विद्यार्थी सुविधाओं के मोह में पढ़ाई-लिखाई से विरक्त होने लगे।सबसे पहले कृषि-योजना के इस घातक पहलू को जयप्रकाश ने देखा और उसके बाद गाँवों के सभी अध्यापकों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। आपस में मिलकर जगह-जगह वे इस योजना की आलोचना करने लगे, कृषि-योजना के नियामक उत्तमचन्द को बुरा-भला कहने लगे तथा विद्यार्थियों को बुला-बुलाकर उन्हें उनके वक्त की कीमत समझाने लगे। और यहाँ तक कहा जाने लगा कि कृषि-योजना द्वारा गाँवों के विद्यार्थियों का शोषण किया जा रहा है।

   0
0 Comments