छोटे-छोटे सवाल (उपन्यास): दुष्यन्त कुमार
टीचर्स - रूम में बैठे पाँचों अध्यापक बहुत देर से इस बात को लक्ष्य कर रहे थे। मगर श्रीवास्तव की बात का कोई जवाब दे कि तभी कमरे की चिक उठाकर असिस्टैंट टीचर रस्तोगी भीतरं दाखिल होते हुए बोला, “सुना भई, आप लोगों ने कुछ ? मुस्लिम स्कूल में सीटें फुल हो गई हैं। मैं अभी-अभी स्टेशन से आ रहा हूँ। वहाँ भी यही चर्चा थी । गूँगे हलवाई की दुकान और नींबू की बगिया में बैठे हुए विद्यार्थी तो विद्यार्थी, शहर के लोग भी हमारे रिज़ल्ट पर बातचीत कर रहे थे कि लड़के अपने-अपने सर्टीफ़िकेट लेकर बिजनौर के आर्यसमाज स्कूल में जा रहे हैं। मुस्लिम स्कूल में जगह नहीं रही । और इस साल हिन्दू कॉलेज की स्ट्रेंग्थ बहुत कम हो जाएगी।"
रस्तोगी की बात पर जयप्रकाश, इतिहास के लेक्चरर रामप्रकाश गुप्ता, नागरिकशास्त्र के लेक्चरर रामाधीन श्रीवास्तव और दो नवनियुक्त अध्यापक पाठक और राजेश्वर सतर्क होकर बैठ गए। मगर तभी रस्तोगी ने उसकी उत्सुकता पर पानी डालते हुए चेहरे पर कोमल दर्द के भाव फैलाकर अत्यन्त थकी-सी आवाज़ में कहा, “यह हम सभी के लिए कितनी लज्जा की बात है ! इसी रिज़ल्ट के कारण हम आज बाहरवालों के सामने मुँह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहे ।”
और तुरन्त सबके माथे जैसे शर्म से झुक गए। राजेश्वर ने कुछ कहने की सोची, पर गम्भीर वातावरण के अनुकूल उसे कोई बात नहीं सूझी। विवश होकर वह इधर-उधर देखने लगा। कुर्सी के हत्थे पर तबला बजाता हुआ गुप्ताजी का हाथ रुक गया और वह उदास होने की चेष्टा करने लगे। जयप्रकाश के मुखं पर एक अजीब तनाव- सा आ गया और उसकी उँगलियाँ अकड़कर मेज़ पर फैलने लगीं। सब ख़ामोश हो गए।
बाहर लड़के शोर मचा रहे थे । और उस शोर से उभरती हुई पवन बाबू की झुंझलाहट टीचर्स - रूम में साफ़ सुनाई दे रही थी ।
लोगों की बेमतलब की ख़ामोशी से ऊबकर राजेश्वर ने पूछा, “क्यों साहब, आख़िर रिज़ल्ट बिगड़ने का कारण क्या है ? पिछले साल तो इतना ख़राब रिज़ल्ट नहीं था।"
इस प्रश्न ने कमरे का समूचा वातावरण बदल दिया । गुप्ताजी का पाँव फिर हिलने लगा और उँगलियाँ कुर्सी के हत्थे पर तबला बजाने लगीं। जयप्रकाश की उँगलियों का खिंचाव ढीला हो गया। पाठक ने मुस्कराकर रस्तोगी की ओर देखा । और रामाधीन श्रीवास्तव ने मुख की उदासी पर कृत्रिम उत्तेजना का रंग लाते हुए कुर्सी आगे खिसका ली ।
क्षणभर पहले की ख़ामोशी गरमागरम बहस में बदल गई।
“मेरे सब्जेक्ट में सिर्फ़ एक लड़का फेल हुआ है।” रामाधीन श्रीवास्तव ने मुख की उदासी पर उत्तेजना का रंग चढ़ाते हुए कहा, “अगर सब लोग अपने-अपने विषयों में मेहनत करते तो रिज़ल्ट इतना खराब कभी न रहता।”
यह एक मामूली सा तर्क था मगर गुप्ताजी ने श्रीवास्तव की इस बात को अपनी वैयक्तिक आलोचना समझा, तड़फकर विस्मयपूर्वक बोले, “क्या आप यह कहना चाहते हैं कि हमने अपने-अपने विषयों में मेहनत नहीं की ? माना कि इतिहास में मेरे पच्चीस में से पन्द्रह लड़के फेल हुए हैं, पर अंग्रेज़ी में तो अस्सी प्रतिशत से भी अधिक लड़के फेल हैं। तो क्या आपका ख़याल है कि उत्तमचन्द जी ने भी अपने विषय में मेहनत नहीं की ?"
उत्तमचन्द इंटर और हाईस्कूल के लड़कों को अंग्रेज़ी पढ़ाया करते थे । गुप्ताजी ने रामाधीन श्रीवास्तव के आत्म-प्रशंसात्मक सीधे-सादे वाक्य को जिस प्रकार उत्तमचन्द से जोड़ दिया था उससे श्रीवास्तवजी घबरा उठे। फ़ौरन क्षमायाचना की मुद्रा में हथियार डालते हुए बोले, “मैंने तो सिर्फ़ अपनी राय आपके सामने रखी थी। मेरा कोई और मतलब हरगिज़ न था। वैसे मैं इस बारे में आपके विचार ज़रूर जानना चाहूँगा।"
गुप्ता विजेता के भाव से मुस्करा दिए और कुछ सोचने का अभिनय करते हुए बोले, “रिज़ल्ट बिगड़ने का कारण है पुराने प्रिंसिपल का शिथिल एडमिनिस्ट्रेशन ।”