लेखनी प्रतियोगिता -02-Jun-2023 "दर्पण"
"दर्पण
गया है खो मेरा दर्पण जिसमें मुझे अपना अक्स दिखता हैं।
तफ़्तीश बहुत कर ली मग़र उसका ना कोई ओर छोर मिलता है।।
नहीं देखा है मैंने अभी नज़र भर कर वो दर्पण।
जिस में मेरी हसरतों का मुझे एक पैग़ाम मिलता है।।
रूबरू है नहीं लेकिन अभी एहसास बाकी हैं।
मेरे चेहरे पर अभी उसका नज़ारा साफ़ मिलता है।।
टूटा भी नहीं है कहीं से वो ना ही आधा अधूरा हैं।
मग़र ठहरा हुआ मुझको नहीं अब वो मेरे घर में मिलता है।।
किसी का हो गया है वो या फ़िर किसी का दिल उस पे आया हैं।
कभी कभार मुझको अक्स उस दर्पण में किसी और का मिलता हैं ।।
मधु गुप्ता "अपराजिता"
Punam verma
03-Jun-2023 02:47 PM
Very nice
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Madhu Gupta "अपराजिता"
03-Jun-2023 02:55 PM
Thank you so much🙏🙏
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
03-Jun-2023 06:55 AM
सुन्दर अभिव्यक्ति
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Madhu Gupta "अपराजिता"
03-Jun-2023 08:44 AM
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और धन्यवाद 🙏🙏
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Varsha_Upadhyay
03-Jun-2023 06:17 AM
बहुत खूब
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Madhu Gupta "अपराजिता"
03-Jun-2023 08:45 AM
बहुत बहुत धन्यवाद और आभार आपका 🙏🙏
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