निरुपमा–23

एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई।

पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले दो लंबे गोल, सिरहाने और पाँयते के कुछ चपटे, कोनों के दो सिरहाने सूचित करते हुए।

दो बड़े शीशे आमने-सामने लगे। दीवार पर चुनी हुई तस्वीरें- परमहंस रामकृष्णदेव, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, श्री रवींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, पं. मदनमोहन मालवीय, बाबू चितरंजन दास और पं. मोतीलाल नेहरू आदि की बड़े आकारवाली।

इनके नीचे एक-एक बगल, मासिक-पत्रों में निकली हुई, आशा, भावना, कविता, शरत, वासंती, वर्षा आदि की काल्पनिक तस्वीरें।

फिर भी तस्वीरों की अधिकता न मालूम देती हुई। लोहे की छड़ों के बाहर से पूरे दरवाजे के आकार की खिड़कियों का आधा ऊपरवाला हिस्सा खुला हुआ, आधा नीचे वाला बंद। पूरबवाली खिड़कियों से प्रभात की हलकी धूप आती हुई। एक ओर एक मेज, जिसके दो ओर दो कुर्सियाँ। एक पर वही बालिका बैठी पढ़ रही है।

इसी समय उसकी दीदी कमरे में आई और दूसरी कुर्सी पर बैठ गई। सामने बालिका के रोज के पढ़ने की तालिका रखी थी, उठाकर देखने लगी। मन का दृष्टि के साथ सहयोग न था, इसलिए देखकर भी कुछ न समझ सकी। केवल लिखावट पर निगाह दौड़ाकर रह गई। मस्तिष्क तक विषय का निश्चय न पहुँचा।

तालिका रखकर युवती बहन को हँसती आँखों देखने लगी। फिर पूछा, "अच्छा, नीली (बालिका का नाम नीलिमा है), हमारे सामनेवाले बैडमिंटन ग्राउंड की घास दो घोड़े दो दिन में चरें तो एक घोड़ा कितने दिन में चरेगा?"

उच्छ्वास से उमड़ती हुई, उसकी ओर मुँह बढ़ाकर, उसी वक्त बालिका ने उत्तर दिया, "एक दिन में।"

'चट्ट' से एक चपत पड़ी। बालिका गाल सहलाती हुई, सजल आँखों से एकटक बहन की चढ़ी त्योरियाँ देखने लगी।

इसी समय एक दासी ने आकर कहा, "दादा बुलाते हैं। यामिनी बाबू मोटर लेकर आए हैं, हवाखोरी को जा रहे हैं।"

युवती दासी की बातें सुन रही थी कि एक ओर से बालिका निकल गई। सीधे यामिनी बाबू के पास पहुँची। यामिनी बाबू उसका आदर करते हैं। उस समय उसका दादा सुरेश वहाँ न था। कपड़े बदलने के लिए निरुपमा को बुलाकर अपने कमरे में गया हुआ था। ब

ालिका अच्छी तरह जानती है कि यामिनी बाबू उसकी दीदी को प्यार करते हैं, और उसके घरवालों की इच्छा है कि उसकी दीदी का यामिनी बाबू से विवाह हो। फिर मन-ही-मन दीदी के प्रति रुष्ट होकर बोली, "वह जो बड़े-बड़े बालवाला हिंदुस्तानी है न-उस होटल में! - आज सुबह गाड़ीवाले बरामदे पर खड़ी दीदी उसे देख रही थी, वह भी दीदी को देख रहा था।"

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