निरुपमा–25

किसी बगीचे के पास मोटर से उतरकर टहलते हुए सुरेश बाबू निरुपमा को अकेली छोड़ देते थे। यामिनी बाबू को बातचीत की सुविधा हो जाती थी। कुछ देर बाद किसी कुंज से टहलकर सुरेश आते थे। इस प्रकार दोनों का परिचय बढ़ गया है। दोनों के हृदय निश्चय ही बँध चुके हैं।

अंग्रेजी पढ़ने पर भी, प्राचीन विचारों की महिलाओं में रहने के कारण निरुपमा हिंदू-संस्कारों में ही ढली है। भाई तथा अपर स्त्रियों का निश्चय ही उसका निश्चय है। पर यामिनी बाबू यूरोप की हवा खाकर लौटे हैं, इसलिए इस वैवाहिक प्रसंग पर कुछ अधिक स्वतंत्रता चाहते हैं।

सुरेश अपने बंगाली समाज की वर्तमान खुली प्रथा के समर्थक हैं, पर एकाएक यामिनी बाबू को दी पूरी स्वतंत्रता से अभ्यास के कारण निरुपमा को संकोच पहुँच सकता है, इस विचार से धीरे-धीरे रास्ता तय कर रहे हैं।

नीलिमा का साथ रहना यामिनी बाबू को पहले से पसंद न था, पर आज सुरेश के मना करने से पहले उसे बुलाकर, ड्राइवर की सीट की बगल में, अपने पास बैठा लिया।

सुरेश बाबू निरुपमा के साथ पीछेवाली सीट पर बैठ ही रहे थे कि होटल के सामने बरामदे पर कुमार खड़ा हुआ दीख पड़ा। नीली यामिनी बाबू को कोंचकर होटल की तरफ देखने लगी। यामिनी बाबू कुमार को देखकर निरुपमा को देखने लगे। निरू सिर झुकाए बैठी थी।

कुमार देखता रहा। मोटर चल दी। सीधे सिकंदर बाग गई। एक जगह सब लोग उतरकर इधर-उधर इच्छानुसार टहलने लगे। यामिनी बाबू नीली के साथ एक कुंज की तरफ गए। भ्रम था ही। सोचते हुए नीली से पूछा, "क्या पूछा था निरू ने तुमसे?"

नीली मुस्कुराकर बोली, "आप भूल गए। आप याद नहीं रख सकते। अच्छा उसमें घोड़े हैं, बतलाइए?"

"हाँ दो घोड़े दो दिन में, तो एक...क्या कहा तुमने?"

"एक दिन में," कहकर नीली समझदार की तरह हँसने लगी।

"अच्छा, इसलिए मारा तुम्हें!"

आवाज ऐसी थी कि नीली ने सहृदयता सूचक न समझी। एक विषय दृष्टि से यामिनी बाबू को देखने लगी।

अब यामिनी बाबू को नीली की मैत्री खटकने लगी; नीली के भविष्य पर अनेक प्रकार की शंकाएँ उन्होंने की। निरू के प्रति जितने विरोधी भाव थे, एक साथ, तेज हवा में बादलों की तरह कट-छँट गए। प्रेम का आकाश पहले-सा साफ हो गया। निरुपमा की ओर अभियुक्त की तरह धीरे-धीरे बढ़ने लगे।

वह एक चंपा के किनारे खड़ी फलों की शोभा देख रही थी। सोच रही थी- 'इनकी प्रकृति इनका कैसा विकास करती है! ये कितने कोमल हैं! खुली प्रकृति की संपूर्ण कठोरता, उपद्रव और अत्याचार बरदाश्त करते हैं! इनके स्वभाव से मनुष्य क्या सीखता है! केवल सौंदर्य के भोग के लिए इनके पास आता है!"

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