निरुपमा–48
नौ
नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से, ललई पाँच ही जोड़ते हैं।
सब हल जोतते और श्रद्धापूर्वक धर्म की रक्षा करते हैं। बेनी बाजपेई कानपुर के मिठाईवाले हैं; पर धर्म की रक्षा करते हुए बीसों बिस्वे बनाए हुए हैं, नीम की जड़ पर बैठे, बाकी इधर-उधर।
पानी बरस चुका है, ये खेत जोतकर विश्राम करते हुए सामाजिक बातचीत कर रहे हैं, पतन से समाज की रक्षा के विचार से।
सभी समाज के कर्णधार हैं। सामाजिक मर्यादा में बड़े, बेनी, सभापति का आसन ग्रहण किए हुए हैं। "बाजपेई जी," व्यंग्य में ललई बोले, "किसुन तो आप लोगों में है?"
"हम लोगों में?" बाजपेई नाराज होकर बोले, "हमारा बीस बिस्वे में खानदान-हेत व्यवस्था, किसुन कनवजिया है!"
"लोग तो कहते हैं?" गुरुदीन स्वर ऊँचा कर बोले।
मुँह बिगाड़कर बेनी ने कहा, "ऐसे बहुत हैं! सब बने हुए हैं।"
"अब कितने रह गए, बाजपेई जी?" सीतल ने हँसकर पूछा।
"अब भी उतने ही हैं।" मन्नी ने उसी तरह उत्तर दिया।
"अब क्या हैं! जैसे बने थे, वैसे ही धो गए।" बेनी गंभीर होकर बोले, "अब तो मकुआ पासी उनसे अच्छा है।" ।
"विलाइत से लौटकर घर नहीं आए।' गुरुदीन इशारे की दृष्टि से देखकर बोले।
"घरवालों को बचाए रहना चाहते हैं।" धीमे गंभीर स्वर से सीतल ने कहा।
"लेकिन क्या बचे रहे घरवाले?" पूरी जानकारी से जैसे मन्नी ने कहा।
बेनी हँसे, मन्नी को देखकर अपनी उच्चता में गंभीर हो गए। फिर कहा, "किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए, पापी अपने ही पापों बहेगा।"
"अरे बाजपेईजी," मन्नी पंजों के बल उठकर बोले, "कानपुर में अपनी अम्मा को बुलाकर मिले और घर न आए, तो क्या गाँववाले इतने बेवकूफ हैं कि नहीं समझे कि वहाँ अम्मा ने सपूत को चौके में बुलाकर खिलाया होगा?"
मन्नी को बाजी मारते देखकर गुरुदीन त्योरियाँ चढ़ाकर बोले, "उसी के बाद रामचंदा कुएँ पर मिला, हमने कहा, यह तेवारियों का कुआँ है, जहाँ बाप ने खुदवाया हो, वहाँ जाव भरो। फिर क्या भरने पाया?"