निरुपमा–52

देवी को बालिका की हिंदी बड़ी भली मालूम दी, मुस्कुराती बढ़ती बालिका को देखती हुई बोली, "कुमार मेरा बाप है।" वे बँगला अच्छा जानती थीं। पढ़ी भी थीं। बालिका के पास आकर सिर पर हाथ फेरकर पूछा, "अब मालूम हुआ?"

नीली लजा गई। लजाकर भी वह दबनेवाली नहीं, तुरंत उत्तर देना उसका पहले का स्वभाव है, बोली, "नहीं, आपके लड़के हैं।"

"आओ, बैठो।" बालिका को सस्नेह पलँग पर बैठालकर कहा, "तुम बड़ी अच्छी हिंदी बोल लेती हो।"

"मैं स्कूल में हिंदी पढ़ती हूँ। कुमार बाबू कहाँ हैं?" नीली कुछ हताश हो चली।

"वह तो वहीं हैं, तुम उसे नहीं ले आईं?" ।

नीली फिर लजा गई, बोली, "इधर एक महीने से मैंने उन्हें नहीं देखा, पहले हमारे सामने के होटल में रहते थे, होटलवाले ने उन्हें नहीं रहने दिया।"

कुमार अपना सब हाल लिख चुका था; होटल छोड़ने का। देवी सावित्री कुछ संकुचित हुईं, पर डरीं नहीं। नीली को जलपान कराने के लिए कुछ पकवान घर के बनाए लेने के लिए गईं। नीली बैठी हुई घर देखती रही।

एक छोटी रकाबी में रखकर नीली को देते हुए कहा, "थोड़ा जलपान कर लो।"

स्नेह के स्वर में नम्र होकर, खाने की इच्छा न रहने पर भी, सभ्यता की स्वाभाविक प्रेरणा से नीली ने रकाबी ले ली और निर्विकार चित्त से खाने लगी। देवी सावित्री गिलास में पानी ले आईं।

नीली का हाथ धुलाकर, तौलिया पकड़े हुए पोंछवाकर, स्नेह से कहा, "कुमार बाबू की तुम्हारी अच्छी जान-पहचान है? तुम्हें खोजते हुए बड़ी मिहनत करनी पड़ी।"

नीली की सरलता उमड़ी कि कुमार बाबू के पेशे की बात कहे, पर एक अज्ञात दबाव से दब गई, बोली, "हाँ, मेरे सामने रहते थे, मैं भी जानती हूँ, दीदी भी जानती हैं।" जबान फिसल गई, सोचकर चुप हो गई।

"दीदी कौन?"

"दीदी, दीदी, और कौन?" अबकी सँभलकर नीली ने उत्तर दिया।

"रामलोचन बाबू की लड़की?" "हाँ," नीली लजाकर बोली।

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