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सृजन

।   सृजन
धर्म है जिंदगी का सृजन ही सृजन,
प्रेम से रह के कर लें दिलों का मिलन।
आज हैं हम यहाँ कल न जाने कहाँ-
कर सृजन आज ही कर लें पूरा सपन।।

जन्म लेकर धरा पे यहाँ जो रहे,
वादा अपना निभाए भले दुख सहे।
बड़े धोखे मिले,कर्म रत ही रहे-
बस सृजन ही रहा उनका प्यारा व्यसन।।

 चिंतक-साधक-उपासक जो भी रहे,
कार्य अपना किए हैं बिना कुछ कहे।
कष्ट आया,उसे झेलकर हो मुदित-
वे किए हैं सृजन,रख हृदय में लगन।।

बात  बिगड़ी  बनाई  उन्होंने  सदा,
कर्ज धरती का सबने किया है अदा।
कभी भी न प्राणों की चिंता किए-
अपने दायित्व का वे किए हैं वहन।।

सृजन लक्ष्य जिसका रहा है यहाँ,
है हुआ नाम उसका हमेशा यहाँ।
संत-साधक-तपस्वी यही तो किए-
साधना-अग्नि में तप किए हैं सृजन।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
            9919446372

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7 Comments

Punam verma

05-Jun-2023 09:36 AM

Very nice

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बहुत ही सुंदर और बेहतरीन रचना

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Varsha_Upadhyay

04-Jun-2023 07:42 PM

बहुत खूब

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