हिरनी–३
3 आठ साल की लड़की रानी साहिबा की दासियों से स्नेह तथा निरादर प्राप्त करती हुई, उन्हीं में रहकर, उन्हीं के संस्कारों में ढलती हुई धीरे-धीरे परिणत हो चली।
वहाँ जो धर्म दासियों का, जो भगवान् रानी से सेविकाओं तक के थे; वही उसके भी हो गए। झूठ अपराध लगने पर दासियों की तरह वह भी कसम खाकर कहने लगी, “अगर मैंने ऐसा किया हो, तो सरकार, सीतला भवानी मेरी आँख ले लें।' वहाँ सभी हिन्दी बोलती थीं, पर जो मधुरता उसके गले में थी, वह दूसरे में न थी; जैसे हारमोनियम के तीसरे सप्तक पर बोलती हो।
रानी साहिबा उससे प्रसन्न थीं। क्योंकि दूसरी दासियों से वह काम करने में तेज और सरल थी। उसका नाम हिरनी रक्खा था। वह जिस रोज रनिवास में आई थी, तब से आज तक, उसी तरह, अरण्य की, दल से छुटी हुई, छोटी हिरनी सी, एकाएक खड़ी होकर, सजग दृग, पार्श्व-स्थिति का ज्ञान-सा प्राप्त करने लगती है
कि वह कहाँ आई, यहाँ कोई भय तो नहीं। दृष्टि के सूक्ष्मतम तार इस पृथ्वी के परिचय से नहीं, जैसे शून्य आकाश में बंधे हुए हों; जैसे उसे पृथ्वी पर उतार कर विधाता ने एक भूल की हो। उसके इस भाव के दर्शन से 'हिरनी' नाम, कवि के शब्द की तरह, रानी के कंठ से आप निकल आया था।
वही हिरनी अब जीवन के रूपोज्ज्वल वसन्त में कली की तरह मधु-सुरभि से भरकर चतुर्दिक् सूचना-सी दे रही है कि प्रकृति की दृष्टि में अमीर और गरीबवाला क्षुद्र भेद-भाव नहीं, वह सभी की आँखों को एक दिन यौवन की ज्योत्स्ना से स्निग्ध कर देती है; किरणों के जल से भरकर, जीवन में एक ही प्रकार की लहरें उठाती हुई, परिचय के प्रिय पथ पर बहा ले जाती है; जो सबसे बड़ी है,
जिसके भीतर ही बड़े और छोटे के नाम में भ्रम है, वह स्वयं कभी छोटे और बड़े का निर्णय नहीं करती, उसकी दृष्टि में सभी बराबर हैं, क्योंकि सब उसी के हैं।
उसी ने हिरनी में एक आशा, एक अज्ञात सुख की आकांक्षा भी भर दी, जिससे दृष्टि में मद, मद में नशा, नशे में संसार के विजय की निश्चल भावना मनुष्य को स्त्री के प्रणय के लिए खींचती रहती है।
इसी समय इंग्लैंड से शिक्षा प्राप्त कर राजकुमार घर लौटे थे, और दो-तीन बार हिरनी को बुला चुके थे। रानी दूसरी दासियों से यह समाचार पाकर हिरनी का विवाह कर देने की सोचनी लगीं। वहीं एक कहार रामगुलाम रहता था।
नौजवान था। रानी साहिबा ने उससे पुछवाया कि हिरनी से विवाह करने को वह राजी है या नहीं। वह बहुत खुश हुआ, उत्तर में अपनी खुशी को दबाकर रानी साहिबा को खुश करने वाले शब्दों में कहा-“सरकार की जैसी मर्जी हो, सरकार की हुकुम-अदूली मुझसे न होगी।”
विवाह में घरवालों की राय न थी। रामगुलाम बागी हो गया। एक दिन उसके साथ हिरनी का विवाह प्रासाद के आंगन में कर दिया गया। हिरनी पति के साथ रहने लगी। साल ही भर में एक लड़की की माँ हो गई।