हिरनी–४
4 दो साल और पार हो गए। रानी साहिबा का स्नेह, हिरनी के कन्यास्नेह के बढ़ने के साथ-साथ, उस पर से घटने लगा। जिन दासियों की पहले उसके सामने न चलती थी, वे ताक पर थीं कि मौका मिले, तो बदला चुका लें।
एक दिन रानी साहिबा ताश खेल रही थीं। पक्ष और विपक्ष में उन्हीं की दासियाँ थीं। श्यामा उर्फ स्याही उन्हीं की तरफ थी। मौका अच्छा समझकर बोली-“सरकार को हिरनी ने आज फिर धोखा दिया; मैं गई थी, उसकी लड़की को जूड़ी-बुखार कहीं कुछ भी नहीं।”
लड़की की बीमारी के कारण हिरनी दो दिन की छुट्टी ले गई थी। रानी साहिबा पहले ही से नाराज़ थीं। अब धुआँ देती हुई लकड़ी को हवा लगी, वह जल उठी। रानी साहिबा ने उसी वक्त स्याही को एक नौकर से पकड़ लाने के लिए कहने को भेज दिया।
स्याही पुलकित होकर बूटासिंह के पास गई। बूटासिंह से उसकी आशनाई थी। बोली, “सरकार कहती हैं, हिरनी का झोंट पकड़कर ले आओ, अभी ले आओ, बहुत जल्द।”
बूटासिंह जब गया, तब हिरनी बालिका के लिए वैद्य की दी एक दवा अपने दूध में घोल रही थी। बूटासिंह को मतलब समझाने के लिए तो कहा नहीं गया था। उसने झोंट पकड़कर खींचते हुए कहा-“चल, सरकार बुलाती हैं।”
प्रार्थथा की करुण चितवन से बूटासिंह को देखती हुई हिरनी बोली-“कुछ देर के लिए छोड़ दो, मयना को दवा पिला दूँ।”
घसीटता हुआ बूटासिंह बोला-“लौटकर दवा पिला चाहे जहर, सरकार ने इसी वक्त बुलाया है।” स्याही साथ लेकर ऊपर गई। हिरनी रानी साहिबा की मुद्रा तथा क्रूर चितवन देखकर कांपने लगी।
रानी साहिबा ने हिरनी को पास पकड़ लाने के लिए स्याही से कहा। स्याही ने जोर से खींचा, पर हिरनी का हाथ छूट गया, जिससे वह गिर गई, हाथ मोच खाकर उतर गया।
रानी साहिबा क्रोध से काँपने लगीं। दूसरी दासियों को पकड़ लाने के लिए भेजा। इच्छा थी कि उसका सर दबाकर स्वयं प्रहार करें। द
ासियाँ पकड़कर ले चलीं, तो रानी साहिबा को आँसुओं में देखती हुई उसी अनिंद्य हिन्दी में हिरनी क्षमा-प्रार्थना करती हुई बोली-“सरकार, मेरा कुछ कुसूर नहीं है।” पर कौन सुनता है, उससे रानी साहिबा की सेवा में कसर रह गई है।
जब पास पहुँची, उसको झुकाकर मारने के लिए रानी साहिबा ने घूँसा बाँधा। हिरनी के मुख से निकला-“हे रामजी!” रानी साहिबा की नाक से खून की धारा बह चली। यह वहीं मूर्च्छित हो गईं। हिरनी के बाल, मुख उसी खून से रंग गए