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स्मृतियाँ

स्मृतियाँ


स्मृतियाँ! हाँ स्मृतियाँ,
इन्हें बहुत तलाश किया,
बहुत! बहुत! बहुत !
बचपन की यादों से ढूंढ़ना शुरू किया,
एक एक पल को खंगाला,
चलचित्र की भांति स्मृतियाँ, 
नर्तन करने लगी,
फिर तरुणाई में तलाश शुरू की,
कुछ यादें दिए सी चमकी और बुझ गईं,
पति बच्चों के साथ कुछ कड़वी मीठी यादें,
इसमें स्वयं का वजूद कहीं शामिल न था,
सब-कुछ अस्तित्वहीन, 
स्वाभिमान रिक्त था,
ये तलाश कुछ जल्दी ही पूरी हो गई,
थोड़ा आगे खंगाला प्रौढ़ावस्था में पहुँच कर,
जहाँ बच्चे सिर्फ अपने में मस्त थे,
माता-पिता उनकेे ज्ञान से बहुत पीछे छूट गए,
तुम्हें कुछ नहीं पता? तुम्हें कुछ नहीं पता?
एक ही आलाप था जो गूंजता रहता था,
कर्ण को चीर कर हृदय में शूल सा चुभता था,
मेरी स्मृतियों की तलाश पूरी हो चुकी थी,
और मिली भी ढेर सारी स्मृतियाँ,
लेकिन उनमें कड़वाहट बहुत थी…….,
कुछ ही थीं जो चेहरे पर मुस्कराहट लाईं,
वो थीं बचपन की यादें मीठी, खट्टी, चुलबुली सी,
छोटी-छोटी खुशियाँ छोटे-छोटे सपने,
न खाने की फ़िक्र न पीने की फ़िक्र,
दौड़ना-भागना, खेलना-कूदना,
पढ़ने से जी चुराना, विद्यालय से जल्दी भागना,
अध्यापक का शिकायत करना,
माँ के हाथ से बहुत बहुत बहुत पिटाई खाना,
पिटना रोना चिल्लाना लेकिन,
पिटने के बाद खाना भरपेट खाना,
नहीं खाएं तो फिर से पिटाई,
समझ ही नहीं पाते थे कि,
"सजा है या प्यार",
उनका तो प्यार भी "डण्डा" था,
"जवान चलाना" क्या होता है जानते ही नहीं थे,
ये तो अब पता चला है,
"न‌ए जमाने की न‌ई पीढ़ी के साथ,
जिसे पता ही नहीं कि "डण्डा" क्या होता है?"  
ये स्वयं के अन्तस में बुढ़ापे की तीसरी "लाठी" 
"श्री" कैसे पहचानेंगे????
 
स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव"श्री"
धौलपुर (राजस्थान)


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6 Comments

Punam verma

06-Jun-2023 09:41 AM

Very nice

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Abhinav ji

06-Jun-2023 09:04 AM

Very nice 👍

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शानदार अभिव्यक्ति

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