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लेखनी प्रतियोगिता -06-Jun-2023 एक भोली भाली अजनबी लड़की

                      एक भोली भाली अजनवी लड़की


 "नहीं शालू तुम मुझे अकेला छोड़कर नहीं जा सकती हो। मै कितना पागल था जो तुम्हें पगली समझता रहा। पागल तो मै था जो तुम्हारे प्यार को समझ ही नहीं पाया। और तुम मुझे हद से ज्यादा प्यार करती रही। "  इतना कहकर राघव ने शालिनी के दोनौ हाथ अपने हाथ में थाम लिए।

        " नहीं बाबूजी अब मुझे यकीन होगया कि तुम भी मुझे चाहते हो अब मुझे मौत भी आजायेगी तब भी कोई दुःख नही होगा। " शालिनी अपने आँसू पौछती हुई बोली।

          "  पगली! तूने मुझे कभी भी अहसास नही होने दिया कि तू मुझे इतना प्यार करती है। यह  कबसे  चलरहा है।" राघव ने पूछा।

      "जब मैने पहले दिन तेरा खाना बनाया था मै उसी दिन से तुझे चाहने लगी थी लेकिन तू तो बुद्धू था प्यार की भाषा समझ भी नही सका था। अब जब  समझ पाया तब बहुत देर होगयी है।" शालिनी की आँखौ से आँसू की धारा बहने लगी थी।

     " नहीं शालू मैं तुझे कुछ नहीं होने दूँगा। मै तुझे रब से लड़कर ले आऊँगा। तूने देखा था तुझे खूँन देने वालौ की लाइन लग गयी थी।"

     "हाँ मै तभी समझ गयी  थी कि तू मुझे हद से ज्यादा चाहने लगा है।" और वह हसने लगी।

  उसको हसता हुआ देखकर राघव को उससे हुई पहली मुलाकात की यादें ताजा होगयी। पहली बार जब वह उसे मिली थी तब भी वह इसी तरह हसकरबात कर रही थी

    राघव इस शहर में पढा़ई करने नया आया था। एक छोटा सा एक कमरे का मकान किराये पर लिया था एक रसोई थी और लैटरिग बाथरूम थे। राघव बहुत ही गरीब परिवार से था। उसके गा़व मे कालेज नहीं था उसके माता पिता उसे बडा़ आदमी बनाना चाहते थे। इसी लिए उसे पढ़ने शहर भेजा था।

  वह अपना खाना स्वयं बनाता था। कपडे़ भी यहाँआकर पहली बार धोये थे गाँव में तो माँ धोदेती थी। खाना भी ऐसा ही बना पाता था।

                 एक सुबह किसीने दरवाजा खटखटाया। जैसे ही राघव ने सोचा इतने सवेरे कौन होगा क्यौकि वह यहा़ किसी से परिचित ही नही था। उसने जैसे ही दरवाजा खोला सामने एक  सावली सी सुन्दर नैन नक्सेवाली लड़की को  एक लड़के केसाथ खडी़देखकर  पूछा," क्या काम है कौन हो तुम ?"

           इतने सारे प्रश्न सुनकर वह मुस्कराई और बोली," मै आपके पडौ़स में ही रहती हूँ । मेरा नाम शालिनी है मेरे अम्मा बाबा मुझे शालू कहते है।आप भी शालू कह सकते हो। " इतना कहकर  वह मुस्कराई और आगे बोली," यह मेरा भाई है नवल यह आठवी में पढ़ता है।क्या  इसे आप ट्यूशन पढा दोगे ?"

राघव ने कहा," नहीं!"

उसने पूछा," क्यौ ?"

      "क्यौकि  मेरे पास टाइम नहीं है?" राघव ने जबाब दिया।

         "मै इसके बदले आपके घर की सफाई और खाना बनादिया करूँगी" वह बोली।

यह सुनकर राघव के मन में लालच आगया क्यौकि उसे खाना बनाना नही आता था कच्चा पक्का बनाकर खाता था। इतने पैसे नहीं थे कि होटल पर खा सके  अथवा खाना बनाने वाली रख सके।

राघव बोला," कपडे़ भी धो दोगी तब मै पढा़ सकता हूँ।

शालिनी सरलता से मान गयी और वह  राघव का सभी काम करने लगी राघव को उसके भाई को पढा़ने में आधिक मत्थापच्ची नहीं करनी पडी़ क्यौकि वह होशियार था।

   सब काम ठीक चलरहा था कि एक दिन  राघव के पास उसके साथ पढ़ने वाली कामिनी कोई किताब लेने  आई। जब शालिनी ने राघव को उसके साथ चिपकर बात करते देखा और शालिनी जल कर राख होगयी और शाम को जाते हुए बोली," कल से अपना काम अपने आप करलेना मै नहीं आऊँगी।,"

   "क्या हुआ ? कलसे क्यौ नही आओगी ?" राघव ने पूछा।

   "बस यौही ! मेरी मरजी  ! मेरा भाई भी ट्यूशन पढ़ने नहीं आयेगा।" इतना कहकर पैर पटकती हुई वह चली गयी।

   राघव उसका इस तरह जाना आश्चर्य से देखता रहगया।

   दूसरे दिन वह नहीं आई । राघव ने जैसे तैसे उठकर खाना बनाया और कालेज गया। दो दिन बाद रविवार था।

  राघव  शालिनी के घर गया। उसकी माँ मिली । उसने पूछा शालू कहाँ है।

   उसकी माँ ने इशारा कर दिया और बोली ,  "वह बीमार है"
राघव उसके पास पहुँचकर जैसे ही उसके माथे पर हात रखा वह बहुत गर्म था।

राघव बोला," शालू तुम्है तो बहुत तेज बुखार है?"

"मालूम है!"

"दवाई ली ? "

   "यह जानकर  तुम्हें क्या करना है  कि मैने दवाई ली अथवा नही ली। मै तुम्हारी क्या लगती हूँ ? जो यह सब पूछ रहे हो? " वह क्रोध करती हुई बोली।

" यह तुम कैसी बहकी बातें कर रही हो ?    तुम मेरे पास आती जाती हो मेरा इतना काम जो करती हो। इसलिए मुझे तुम्हारी चिन्ता होना स्वाभाविक है।"  राघव बोला।

" बिल्कुल ठीक कहा आपने? अब मै दो तीन दिन से आपका कुछ भी काम नही कर रही हूँ इसलिए अब आपको यह सब पूछने की क्या जरूरत  है। किसी और से काम करवालो। "  शालिनी चिड़ती हुई बोली।

       राघव ने उसकी सुने बिना रिक्शा मंगवाया और उसे  उसकी माँ के साथ  रिक्शे में बिठाकर डाक्टर के पास लेकर गया और वहाँ डाक्टर को दिखाया।

  डाक्टर ने उसका ब्लड टैस्ट करवाया और उस टैस्ट में उसको डैगू निकला ओर उसकी प्लेटनैस बहुत गिर रही थी।

    डाक्टर ने उसे भरती कर लिया और उसका इलाज चलने लगा । उसका खून भी कम होता जारहा था इसलिए डाक्टर ने  ओ + ग्रुप के खून का इन्तजाम करने के लिए बोला।

    रा,घव ने सभसे पहले अपने खून का ग्रुप  चैक करवाया जब वह नहीं मिला तब उसने अपने दोस्तौ को  बुलाया। और खून का इन्तजाम कर दिया।

   राघव ने उस रात  अस्पताल में ही गुजारी। और वह पूरी रात जागता रहा। राघव को भी अब शालू से प्यार होगया था।  अब उसे एक एक घटना याद आरही थी।

    उसने शालू से पूछा," शालू एक दिन मेरे पैन्ट की जेब में  गुलाब निकला था क्या वह तुमने ही रखा था।

वह हसने लगी और बोली," तेरी समझ में बहुत देर से आई वह गुलाब मैने ही रखा था।

         अब राघव की  समझ में सब आता जा रहा था। कि शालू उसे कबसे प्यार करती है।

      शालू की तबियत फिर से बिगड़ने लगी थी डाक्टरौ की समझ में कुछ नही आरहा था। राघव ने उसके इलाज में किसी तरह की  कमी नही छोडी़ परन्तु ऊपर वाले की मरजी कुछ औरही थी।

   जब अस्पताल में शालू व राघव दोनों ही थे।  शालू ने राघव को इशारे से अपनेपास बुलाया। और हकलाती हुई बोली," मेरी बात सुनो! शायद अब मेरा इतना ही दाना पानी था अब मुझे आभास होगया है अब मैं नहीं बचूँगीं। आप मेरी फिक्र छोडो़ ओर अपनी पढा़ई में ध्यान दो।"

        "शालू  तू कैसी बहकी बातें कर रही है ? सब कुछ तो  ठीक है  ?"  राघव बोला।

      "तू मुझे पागल समझता है  मैने कल डाक्टर की बातें सुनी थी शायद वह ऐसा कुछ बोलरहा था कि अब इसका बचना मुश्किल है?" शालू बोली।

इतना कहकर उसकी आँखौ से आँसुऔ की गंगा जमुना बहने लगी।

  राघव ने अपने रूमाल से उसके आँसू पौछे और बोला," नही शालू दिल छोटा नहीं करते है सब ठीक होजायेगा। चिन्ता मत कर !"

                  शालू उठकर बैठ गयी और उसके गले में बांहें डालकर  बोली," ओए तू  क्यौ रोता है देख मै हस रही हू तू भी हस और मुझे आज तो प्यार करले  फिर मालूम नहीं-----?

राघव ने उसके होठौ पर अपनी उँगली रखदी और बोला,"नही  आगे कुछ मत बोलना मै तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा।"  इतना कहकर वह उसे किस करने लगा। शालू भी उसे प्यार करने लगी और उसने राघव की बाँहों में अन्तिम साँस ली।

      राघव पागल की तरह बोला," नही शालू तुम मुझे अकेला छोड़कर नहीं  जा सकती हो और उसने आवाज लगाई  "डाक्टर ! डाक्टर !

   उसकी आवाज सुनकर  नर्स दोड़ती हुई आई और उसे चैक करने लगी । लेकिन वहाँ तो केवल  शरीर पडा़ हुआ था आत्मा तो बहुत दूर जा चुकी थी।

       राघव अपने हाथ मलता रह गया और सोचने लगा  वह  कौन थी जो मेरे तन मन के इतने करीब आगयी थी। क्या उससे मेरा कोई पिछले जन्म का नाता था? अब वह हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था।

नोट:- यह छोटी सी रचना आपको  कैसी लगी अपनी राय अवश्य दीजिए।


आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।

नरेश शर्मा " पचौरी "


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11 Comments

अदिति झा

27-Jun-2023 08:43 PM

Nice 👍🏼

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Alka jain

27-Jun-2023 07:38 PM

Nice 👍🏼

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kashish

07-Jun-2023 04:09 PM

nice

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