मेरे नसीब में तू हैं की नहीं
मेरे नसीब में तू हैं की नहीं
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अक़्सर तन्हाइयों में आवाज़ लगता ...ख्यालों की दुनिया से मुझको बुलाता ..पास बैठ मेरे गोद में सर रखकर कहता ...
ये सूकून ये आराम मख़मली बिस्तर पर कहाँ जो तुम्हारे साथ इस बैंच पर खुले आसमान को निहारने में है...और मैं उसके बालों में हाथ फेरकर कहती परछाइयों के पीछे भागा नहीं करते
ये भला कब अपनी हुई है .....
मेरे नसीब में तू हैं की नहीं
हैं ये मेरी बदनसीबी
कि सुलझती ही नहीं
एक सिरा पकड़ती हूँ
तो दूसरी उलझ जाती है
क्या तुम्हें नहीं लगता
की मैं तेरे नसीब में नहीं
यूँ सँजो कर नहीं रखते
अपशगुन होता है
शास्त्रों को मानते हो न
उनमें भी लिखा है
मृत शरीर को मुक्ति
अंतिम संस्कार के बाद मिलती है
प्रिय! मत बांधो मुझको
मोह के बंधन में
मुक्त कर दो अपने स्नेहपाश से
कर आओ पवित्र गंगा में
इन यादों की गठरी का विषर्जन!
मगर कहाँ समझता वह दीवाना पानी पर अपने होंठ रखकर मुझसे कहता .....देखो कहाँ है दूरियाँ ?मैंने तो चाँद को चूम लिया ।अब बताओ! चाँद मुझसे दूर कैसे हुआ भला ..?
माना तुम नहीं हो
आसपास कहीं
मगर मिलती हो अक़्सर
जानती हो कहाँ..?
मुठ्ठी भर बारिश की बूंदों में
मोमबत्ती की लौ में
आती हुई
कमरे की रौशनदान के
उस रौशनी में
जो आते ही लिपटती है
और चुम कर मेरे पलकों को
नींद से जगाती है मुझको
बाग़ीचे के फूलों में
जिसकी खुश्बू भर देती है
मुझमें तुम्हारे एहसास
सड़कों पर स्ट्रीटलाइट से बनी परछाइयाँ
फिर जो दूर तक साथ चलती है !
उसके आँखों से बरसते बरसात में भीगते रहे दोनों साथ साथ उस पार्क के बैंच पर जिसके एक छोर पर लिखा था.....
I Miss You always
कुछ लोग नसीब में नहीं होते एक खूबसूरत नाम लिखकर ।
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प्रिया पाण्डेय "रोशनी"
Sneh lata pandey
05-Oct-2021 07:43 PM
very nice
Reply
Seema Priyadarshini sahay
05-Oct-2021 11:43 AM
Very nice
Reply
Shilpa modi
03-Oct-2021 07:07 AM
बहुत खूबसूरत रचना
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