Add To collaction

द गर्ल इन रूम 105–२४

मेरा दिमाग किंतु-परंतु में उलझा हुआ था। कभी-कभी यह तय करना बहुत मुश्किल हो जाता है कि किसी लड़की के साथ कैसे बर्ताव करें। मेरे अंदर का एक हिस्सा तो बोल्ड क़दम उठाना चाहता था।

चुपचाप उसके बिस्तर में घुस जाओ और उसको किस करके हैप्पी बर्थडे बोलो, वह बोल्ड आवाज़ मुझसे कह रही थी।

ओके, लिप्स पर ना सही, फोरहेड पर ही सही। फोरहेड वाले किस से तो कोई प्रॉब्लम नहीं होती है ना?

अंदर से एक और आवाज़ बोली। नहीं, इसे बिगाड़ो नहीं। उसने तुम्हें बुलाया है, उसे ही तय करने दो, एक तीसरी आवाज़ ने कहा ।

था ही।

मेरे

मैंने मन मारकर ही सही, इस तीसरी आवाज़ की बात मान ली। लेकिन चाहे जो हो, मुझे उसको उठाना तो

मैंने फिर ज़ारा का कंधा हिलाया। इस बार थोड़ा ज़ोर से वह अब भी नहीं उठी। मैंने उसके चेहरे से चादर

खिसका दी। लेकिन वह जैसे गहरी नींद में चुपचाप लेटी रही। “ओके ज़ारा, बहुत मज़ाक़ हो गया। मैं यहां तक चलकर तुम्हें विश करने आया हूँ। हैप्पी बर्थडे । '

वह टस से मस नहीं हुई। "तुम उठोगी या नहीं?"

कोई जवाब नहीं।

'ज़ारा, मुझे मालूम है, मुझे क्या करना है। मैं बेड़ में आकर तुम्हारे साथ सो जाऊंगा, शायद तब जाकर तुम जागो।' मैंने हंसते हुए कहा, लेकिन कोई हलचल नहीं हुई। तब मैं उसे पीछे धकेलने के लिए झुका। मुझे उसका

शरीर भारी महसूस हुआ।

'ज़ारा,' इस बार मैंने ज़ोर से कहा 'तुम ठीक हो ना?" मैंने उसके माथे को छुआ। वह बर्फ़ की तरह ठंडा था। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। कुछ तो ग़लत था।

मैंने चादर को उसके चेहरे के नीचे खिसकाया तो देखा उसकी गर्दन पर लाल निशान थे।

'ज़ारा, बेबी, ' मैंने कहा। मैंने उसके गाल, आंखों, कानों को हुआ। लेकिन सबकुछ ठंडा था । 'वेक अप, मैंने कहा, लेकिन मुझे मालूम नहीं था ये मैं किससे कह रहा था। मैंने रूम की मेन लाइट जला

दी। सौ वॉट की तेज रोशनी से मेरी आंखें चुंधिया गईं। लेकिन अब मैं ज़ारा को और ग़ौर से देख सकता था, जो बिना किसी हलचल के लेटी हुई थी।

"ज़ारा, ' मैंने ज़ोर से कहा। मैं अपनी उंगलियों को उसकी नाक के पास ले गया। मुझे कुछ भी अनुभव नहीं हुआ । मैंने फ़िल्मों में देखा था कि कैसे नब्ज़ देखी जाती है। मैंने जारा की पतली, ठंडी कलाई उठाई। वहां कोई

धड़कन नहीं थी। मैंने बार-बार चेक करने की कोशिश की, लेकिन कुछ भी नहीं। तो क्या ज़ारा मर चुकी थी? मेरा दम घुटने लगा। मुझे खुली हवा की दरकार थी। मैं उठा और खिड़की को पूरा खोल दिया। मैंने नीचे

देखा। चांदनी में मुझे सौरभ दिखाई दे रहा था। वह वहीं खड़ा था और एक पैर से दूसरे पैर पर अपने वज़न को

शिफ़्ट कर रहा था। उसने मुझे खिड़की में देखा और हाथ हिलाया। फिर उसने नीचे की ओर इशारा करते हुए कहा कि अब मुझे लौट जाना चाहिए। मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सका।

मैं फिर से कमरे में गया। नहीं, मेरी ज़ारा इस तरह से नहीं मर सकती थी। यह कोई बुरा सपना होगा। मैं वहां चुपचाप खड़ा उसको देखता रहा, यह उम्मीद करते हुए कि वह अभी जाग उठेगी। मेरी जेब में फोन वाइब्रेट हुआ। मैंने सौरभ का कॉल पिक किया। वह शरारत भरे स्वर में बोल रहा था—

'भाई, चल क्या रहा है? तुम फिर से अंदर चले गए। क़िस्मत मेहरवान है क्या? मैं यहां रुकूं या जाऊं?"

'सौरभ' मैंने कहा और चुप हो गया।

"हां?"

'सौरभ, ऊपर आओ।'

'PIT?'

'जल्दी से यहां आओ।'

'लेकिन तुम मुझे अपनी गर्लफ्रेंड या एक्स-गर्लफ्रेंड के रूम में क्यों बुला रहे हो?" "आई वेग यू, सौरभ, जल्दी आओ, मैंने लगभग रुआंसा होते हुए कहा। वह समझ गया कि कुछ ना कुछ तो

गड़बड़ हैं।

   0
0 Comments