द गर्ल इन रूम 105–२५
मैं ऊपर आया तो ज़ारा को कोई दिक्कत तो नहीं होगी?" 'बस आ जाओ. मैंने कहा और फ़ोन रख दिया। इसके बाद मैं फिर खिड़की पर चला गया और उसकी मदद
करने के लिए पेड़ के तने पर फोन की फ़्लैशलाइट डालने लगा। उसने नर्वस तरीके से आसपास देखा और पेड़ पर चढ़ने के लिए एक टांग उठाई। आम का पेड़ चरमराया । ये पेड़ आख़िरकार बंदरों की उछलकूद के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, इसलिए नहीं कि नब्बे किलो के ओवरवेट
मनुष्य उन पर चढ़ें।
"ध्यान से। अब बायां पैर अगली डाल पर रखो, मैं धीमी आवाज़ में उसे निर्देश देता रहा इस पूरे कांड को किसी ने होते नहीं देखा।
उसने खिड़की के फ्रेम पर पैर रखा, मैंने उसे अंदर खींच लिया।
'क्या बात है, भाई?' उसने कहा।
मैंने खिड़की बंद की और भीतर से चिटखनी लगा दी।
उसने उसे बेड में लेटे देखा।
‘वो सो रही है?' उसने फुसफुसाते हुए कहा । 'तुमने अभी तक उसे उठाया नहीं
?"
"वो मर चुकी है।"
सौरभ को जैसे ज़ोरों का झटका लगा।
"क्या?" उसने चीखते हुए कहा।
"धीरे बोलो। ये गर्ल्स हॉस्टल है। यहां पुरुषों की आवाजें नहीं सुनाई देनी चाहिए।'
पुरुषों की आवाज़ की ऐसी की तैसी, भाई। तुम ये क्या बोल रहे हो?" सौरभ ने कहा, उसकी आवाज़ और
ब्लडप्रेशर दोनों ही और तेज हो गए थे। मैंने उसकी गर्दन पकड़ी और अपने हाथ से उसका मुंह दबा दिया।
'प्लीज़, चुप रहो,' मैंने कहा । 'तुम मुझे भी डरा रहे हो। एकदम चुप, समझे?"
सौरभ ने सिर हिला दिया। मेरा हाथ अब भी उसके मुंह पर था। लेकिन मैंने उसकी पकड़ अब ढीली कर दी
थी।
उसका चेहरा देखो,' मैंने कहा ।
सौरभ ने खांसते हुए कहा, 'आर यू श्योर? हो सकता है, उसकी तबीयत ठीक न हो।"
'नहीं, वो अब इस दुनिया में नहीं है। उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ चुका है। उसकी सांसें नहीं चल रहीं। ज़रा
उसने उसकी गर्दन पर लाल निशान देखे। 'लेकिन यह हुआ कैसे?'
'मुझे क्या मालूम? मैं जब यहां आया तो यह ऐसे ही थी।' “लेकिन उसी ने तुम्हें मैसेज करके बुलाया था,' सौरभ ने कमरे में यहां से वहां तक टहलते हुए कहा ।
'हां, मैंने कहा और अपना फोन खोल लिया। यह कोई सपना नहीं था। फ़ोन में उसके मैसेजिस थे। वह मुझे मिस कर रही थी और यह चाहती थी कि मैं उसे ख़ुद यहां आकर विश करूं। मैं ज़ारा की स्टडी चेयर में बैठ गया और उसके चेहरे को गौर से देखा । किसी सोते हुए बच्चे की तरह शांत चेहरा । मेरा प्यार मर चुका था। लेकिन
हैरानी की बात है कि मुझे किसी तरह का कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था। "अब हम क्या करेंगे?' सौरभ ने कहा।
"पता नहीं, लेकिन प्लीज़ बैठ जाओ। तुम्हारी चहलकदमी से मैं नर्वस हो रहा है।"
'मैं डरा हुआ हूं,' सौरभ ने कहा। मैं भी डर रहा था, लेकिन मैं यह अफोर्ड नहीं कर सकता था कि उसकी तरह मेरी घिग्घी बंध जाए। किसी ना किसी को तो ठंडा दिमाग़ रखना ही था। "मैंने इससे पहले कभी कोई डेड बॉडी नहीं देखी, ' सौरभ ने कहा, जैसे कि मैं तो मुर्दों के साथ ही रात-दिन
घूमता रहता था। भाई, कुछ करो।
शटअप, सौरभ मैं वही सोच रहा हूँ। तुम्हारे पास आइडियाज़ हैं?" "नहीं, भाई। हमें यहां पर आना ही नहीं था। हम अपने अपार्टमेंट में दारू पार्टी करते हुए कितने खुश थे।
मैंने तो पहले ही कहा था कि यहां आना बहुत बुरा आइडिया है।' वह इसी तरह बड़बड़ाता रहा और मैरा भी दिमाग़ ख़राब करता रहा। मेरा मन कर रहा था कि उसे ज़ोर से एक तमाचा जड़ दूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता था। हां, यह सच है कि उसने मुझे यहां आने से मना किया था,