ہد
ہد
کس سے کیسی کیا شکایت؟
محبت کا یہ فسانہ ہے۔
ہد میں رہے کبھی ہد بھولے،
بس اتنا سا افسانہ ہے۔
کب سے کھد کو ڈھونڈ رہے تھے،
حوش ہیں گم تو پائیں کیا؟
چھوکر تونے یاد دلایا،
ان نظروں میں پہچانا ہے۔
بھٹک رہا ہے صحرا صحرا،
دریا بھی بڑا پیاسا ہے۔
ڈھونڈ رہا ہے حدود اپنا،
ورنہ کھارا ہو جانا ہے۔
قلم کار۔ سرتا شریواستو "شری۔
دھولپر (راجستھان)
हद
,किससे कैसी क्या शिकायत
मुहब्बत का ये फ़साना है।
,हद में रहे कभी हद भूले
बस इतना सा अफ़साना है।
,कबसे खुद को ढूँढ रहे थे
होश हैं गुम तो पाएं क्या।
,छूकर तूने याद दिलाया
इन आँखों में पहचाना है।
,भटक रहा है सहरा-सहरा
दरिया भी बड़ा प्यासा है।
,ढूँढ रहा है हुदूद अपना
वर्ना खारा हो जाना है।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Sarita Shrivastava "Shri"
09-Jun-2023 09:35 PM
بہت حوب
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