द गर्ल इन रूम 105–४३
अध्याय 8
'केशव, केशव बेटा, मुझे अपनी मां की आवाज़ सुनाई दी तो मैं उठ बैठा। मैंने यह मालूम करने के लिए अपने आसपास देखा कि मैं कहां पर हूं। पुलिस थाने के शोरगुल के बावजूद मैं मेज पर ही सो गया था। दीवार घड़ी चार बजे का समय बता रही थी।
'मां' मैंने कहा और आंखें मनीं 'तुम कब आई?" "अभी आई। क्या हुआ? तुम यहां पर कैसे?"
'पापा कहां हैं?"
"वहां।' उन्होंने इंस्पेक्टर राणा के ऑफ़िस की ओर इशारा किया। ठीक तभी पापा वहां से बाहर निकले और
मेरी ओर बढ़े। "हमने तुम्हें दन फ़ोन लगाए, तुमने एक बार भी पलटकर कॉल नहीं किया, उन्होंने कहा। "सॉरी पापा, मैं बस... मैंने कहा।
इससे पहले कि मैं अपना वाक्य पूरा कर पाता में फूट-फूटकर रोने लगा। पापा पर इसका कोई असर नहीं हुआ और वे रूमाल से अपना चेहरा साफ़ करते रहे। मां ने मुझे गले लगा लिया। इससे बेहतर मैंने अपने जीवन में कभी कुछ अनुभव नहीं किया था। मैं चाहता था कि अपने बचपन में लौट जाऊं, जहां मां मुझे प्यार से सुलाया करती थी।
"तुम पुलिस थाने में यह सब नाटक क्यों कर रहे हो?" पापा ने कहा।
'सॉरी पापा,' मैंने अपने को मां से अलग करते हुए कहा और आंसू पोंछ लिए। पुलिस थाने में मौजूद दूसरे
लोग मुझे हमदर्दी भरी नज़रों से देखते रहे। शायद वे सोच रहे थे कि मैं लंबे समय के लिए जेल जाने वाला हूँ।
"तुम इस चक्कर में कैसे फंस गए। हमें तो ख्याल था कि तुम ट्यूशंस ले रहे हो और एक जॉब की तलाश कर रहे हो।' यह मेरे पिता की इस भूल को दुरुस्त करने का ठीक समय नहीं था कि मैं एक जॉब की तलाश नहीं कर रहा,
एक जॉब कर रहा था। मैं एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में फैकल्टी के रूप में काम कर रहा था। यह ट्यूशन लेना नहीं था। "मैंने कुछ भी गलत नहीं किया, पापा। मैं आपकी और मां की क़सम खाकर कहता हूं।"
'तुमने शराब पी और गर्ल्स हॉस्टल में गैरकानूनी रूप से घुस गए। पूरा देश अब से बात जानता है।"
"मेरा मतलब ये था कि मैंने किसी की हत्या नहीं की, पापा।"
"बहुत बड़ा काम किया। शाबाश, बेटा। शाबाश कि तुमने किसी का मर्डर नहीं किया।" मेरा यह मतलब नहीं था. पापा' में फिर रोने लगा। मैं कसम खाकर कहता हूं मुझे नहीं मालूम था चीजें इतनी बिगड़ जाएंगी।' "वो मुस्लिम लड़की, ' पापा ने सख्त लहजे में कहा, 'वो लड़की पहले दिन से ही हमारे लिए मुसीबत बनी
हुई थी। मैंने बहुत साल पहले ही तुमको समझा दिया था। और मेरे ख्याल से तुम दोनों के बीच सब कुछ खत्म हो चुका था।'
"हां, हो गया था।'' "फिर? तुम्हारा दिमाग फिर गया था क्या, जो फिर से उसके पास चले गए? पिछली बार तुमने मुझको जो
शर्मिंदगी महसूस कराई थी. वो काफ़ी नहीं थी क्या?"
'आप चिल्ला रहे हैं. राजपुरोहित जी मां ने कहा प्लीज़, इस बारे में बाद में बात कर लेना। अभी हम
चलें? आओ बेटा, घर चलते हैं।"