द गर्ल इन रूम 105–४५
अध्याय 9
'हे केशव,' रघु ने मेरे कंधे को छूते हुए कहा । जारा को दफनाया जा रहा था। पुलिस थाने से घर लौट आने के बाद मैंने अपने माता-पिता को एक-एक बात साफ़-साफ़ बता दी। मुझे
चंदन अरोरा को भी सब कुछ एक्सप्लेन करना पड़ा, जो मुझे कॉल पर कॉल किए जा रहा था। अपने गुटखे भरे मुंह से उसने फ़ोन पर ही कहा, 'मैं तुम्हारे साथ है। तुम मीडिया को बता सकते हो कि तुम एक प्रतिष्ठित कोचिंग क्लास कंपनी चंदन क्लासेस के लिए काम करते हो। इससे हमें पूरा देश जानने लगेगा, यू नो। तब मुझे उसको बताना पड़ा कि मुझे मीडिया से बात करने को मना किया गया है।
"हे रघु, तुम कब आए?" मैंने मुड़ते हुए कहा ।
उसने सफेद कुर्ता पजामा पहन रखा था। उसने काले फ्रेम का अपना चश्मा उत्तारा और आंखें मली।
कल शाम आया तो तुमने उसे देखा?" उसने हल्की आवाज़ में कहा। मैंने सिर हिला दिया।
सौरभ और मैं छतरपुर में ज़ारा के घर के पास मुस्लिम कनगाह में आए थे। उसके बाएं हाथ पर प्लास्टर वहा था। उसकी बांह और गर्दन के पीछे वाले हिस्से पर चोट के निशान थे।
"मुझे सब कुछ बताओ, प्लीज़, रघु ने कहा 'मैं नहीं चाहता कि मुझे अंधेरे में रखा जाए।' पता नहीं क्यों, जारा की मौत के बाद मैं उससे इतनी नफरत नहीं कर पा रहा था, जितनी पहले करता था। पता नहीं उसको यह बात मालूम थी या नहीं कि ज़ारा ने मरने से पहले मुझे मैसेज करके बुलाया था। मैंने सोचा शायद मुझे उसे बता देना चाहिए। वैसे भी मैं पुलिस को यह पहले ही बता चुका था, जो उसे वैसे भी ये बात देर- सवेर बताती ही। लेकिन मैं अपने मुंह से उसे यह बताना चाहता था कि जारा फिर से मेरे पास लौटकर आना चाहती थी। लेकिन फिर ऐसी सतही बातें सोचने के लिए मैंने अपने आपको धिद्वारा और रघु को उस रात हुई तमाम बातें एक-एक कर बता दीं। लेकिन जारा ने उस रात मुझे क्या मैसेज भेजे, वो मैंने उसे साफ़-साफ़ नहीं बताया।
'हम फिर से मिले मैं उसे विश करने जा रहा था, बस इतना ही, मैंने अपनी कहानी ख़त्म करते हुए कहा । उसने सिर हिला दिया। उसका सिर झुका हुआ था।
"यों बहुत भयानक है, मैंने उस अजीब सी खामोशी को तोड़ते हुए कहा । उसने अपना होठ चबाया और मेरी आंखों में देर तक देखता रहा। उसने कुछ कहा नहीं।
क्या वो यह सोच रहा था कि यह मैंने किया है?
"लेकिन पहले उसी ने मैसेज किया था. मैंने अपने बचाव में कहा। 'अब इससे क्या फर्क पड़ता है? हमने उसे हमेशा के लिए खो दिया। और उसके लिए जिम्मेदार है कमबख्त यह शहर मैंने कितनी बार उसे कहा था कि यहां से चलो।'
मैं दूसरी तरफ देखता रहा। जारा के पिता हमारे पास चले आए। वे रघु से अकेले में बात करना चाहते थे, इसलिए वे दोनों ही मुझसे दूर हट गए।
मैं और सौरभ कुन पर गए। वहां ज़ारा की लाश एक सफ़ेद कपड़े में लिपटी हुई थी। मुझे एक अजीब-सा ख्याल आया कि शायद वह इंतज़ार कर रही थी कि में उसके पास जाऊं और उससे बात करूं। और जब मैं ऐसा करूंगा तो मुस्कराते हुए उठ जाएगी। वही खूबसूरत मुस्कराहट, जिसे देखकर सब ठीक हो जाया करता था। • पास ही कुछ बुजुर्ग मुस्लिम अरबी भाषा में ज़ोर से कुछ पढ़ रहे थे। सफ़दर वहां आए। उनका चेहरा तना हुआ था और हाथ बंधे थे। अलबत्ता मुस्लिमों के कफन दफन के दौरान आम तौर पर औरते मौजूद नहीं होतीं,