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खर्राटे......

आज दिनांक १२.६.२३ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर मेरी प्रस्तुति
...................... खर्राटे...................

खर्राटे लेना तो मनुष्य की आदतन  विकृति है
सीधे सोना भी उनमें से एक मानवीय प्रकृति है।

कभी कभी तो खर्राटों की ध्वनि इतनी कष्टकर हो जाती,
आस-पास होने वालों की रात यूं ही गुज़र जाती।

बेफ़िक्र इन्सान रात्रि को टांगें पसार कर सोता है,
सारे दिन की थकान रात्रि को सो कर दूर कर लेता है।

वह क्या जाने उसके खर्राटे  भूत की संज्ञा पाते हैं,
आस-पास सोने वाले  सोच भूत  डर जाते हैं।

एक बार तो ट्रेन में मेरे साथ ऐंसा वाकया पेश आया,
डर कर उठ बैठा और इकट्ठा कर साहस  खुद को चेताया।

फ़िर उन पेटू साहब को कंधा पकड़ हिलाया मैंने,
विनती करी श्री मान करवट ले  सो जाइये कहा मैंने।

समझ गये वह शायद वह सज्जन भुक्त-भोगी से लगते थे,
पत्नी देवी से वो शायद डांट भी  खाते रहते थे।

तुरंत ली करवट साहब ने और मै निश्चिन्त हो लेट गया,
अभी नींद लगी ही थी कि फ़िर सिंह गर्जन से जाग गया।

देखा तो वह पेटू साहब फ़िर से सीधे लेटे थे,
न जाने कौन सा वाद्य यंत्र थे जो  स्वयं सुचालित होते थे।

भोर अब दूर नहीं थी और चेन्नई था आने वाला।
सभी मुसाफिर जग बैठे थे और असबाब भी सबने बांध डाला।

मेरा एक एक बैग था जिसमें  सिर्फ एक चादर थी रखनी,
ट्रेन खट खट करती भाग रही थी,न लोकल स्टेशन की इज्जत रखनी।

आखिर ६.४० हुआ और सेन्ट्रल स्टेशन आ या,
उतर रहे थे ऐंसे यात्री जैंसे प्रिय से मिलने का क्षण आया।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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5 Comments

वानी

24-Jun-2023 07:39 AM

Nice

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Muskan khan

13-Jun-2023 04:39 PM

Wonderful

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Sachin dev

13-Jun-2023 04:25 PM

Nice

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