पहनावे का दिखावा
पहनावे का दिखावा
मानव जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताएं भोजन वस्त्र और आवास। इनमें आवास से पहले और भोजन के बाद स्थान आता है वस्त्र अर्थात् परिधान का। वस्त्र या परिधान मूलभूत आवश्यकता की सूची में दूसरे स्थान पर है। भोजन और आवास के समान परिधान में समय के अनुसार बहुत परिवर्तन हुए। परिधान जो आवश्यक आवश्यकता है शरीर ढकने का माध्यम धीरे-धीरे अपनी संपन्नता वैभव दिखाने का माध्यम बन गया। रुचि पहले परिष्कृत होती गई और अब परिष्कृत होते-होते जाने किस अतल गहराई में मानव की रूचि पहुंच गई है। परिधान मात्र अपना वैभव ही नहीं दूसरे को निम्न दिखाने का भी साधन बन गया है। किसी भी समारोह में जाने के पहले लोगों का परिधान चयन करना भी एक बड़ा काम हो जाता है मस्तिष्क में एक ही बात रहती है, उसका परिधान किसी अन्य के परिधान के बराबर न होकर, अधिक आकर्षक और मूल्यवान लगे। यह प्रतिस्पर्धा धीरे-धीरे एक दूसरे को नीचा दिखाने, दूसरे को अपने से हीन समझने की भावना में परिवर्तित हो जाता है। कभी-कभी यह प्रतिस्पर्धा की भावना कई लोगों में हीनता की भावना भी भर देती है।
यही कारण है कि विद्यालय मे यूनिफार्म का चलन प्रारंभ किया गया जिससे किसी भी बच्चे में दूसरे के देख कर हीन भावना नहीं आए। बच्चे भी अपनी संपन्नता को प्रदर्शित करने पर रोक लगा सकें। आजकल तो कई महाविद्यालयों कार्यालयों और प्रशिक्षण संस्थानों में भी यूनिफॉर्म की व्यवस्था कर दी गई है इसी दिखावे की प्रतिस्पर्धा की भावना से बचने के लिए।
इसके बाद भी सामाजिक समारोह और मांगलिक समारोह में यह वैभव का दिखावा प्रदर्शित होता ही है। कई विवाह और मांगलिक समारोह में देखा गया है, लोग उपहार देने से अधिक अपने पहनावे पर खर्च करते हैं। बाद में रोते हैं यह शादी ब्याह का सीजन एक अनावश्यक खर्चे का घर लेकर आता है। जबकि उन्होंने विवाह में उपहार देने अन्य सहायता देने कई गुना अधिक अपने पहनावे पर खर्च किया होगा, वार्डरोव भरा रहे फिर भी नया लेकर ।
उच्च वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग में ब्रांडेड परिधान का फैशन है।एक ब्रांडेड सेट के बदले उसी कीमत में कम से कम दो या तीन सेट आ जाएंगे किसी सामान्य निर्माता कंपनी के। लेकिन फिर भी अधिक मूल्य देकर ब्रांडेड कपड़े लिए जाते हैं। वे तो उतना व्यय करने की क्षमता रखते हैं इसलिए करते हैं, मगर हमेशा से उच्च वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग से प्रतिस्पर्धा करने वाला मध्यम और निम्न वर्ग उनकी नकल करने में अपने कई आवश्यक कार्यों की आहुति देकर ब्रांडेड कपड़े लेकर अपनी बजट बिगाड़ लेता है।
एक और नया चलन देखने को आ रहा है आज के दौर में। फिल्म और टीवी को देखकर समाज में वैसे ही परिधान पहनने की होड़ मची है। फिल्म में भूल जाते हैं फिल्म में वह कपड़े नायक अथवा नायिका पैसे कमाने के लिए पहनते हैं परंतु उसकी नकल करते हुए सामान्य जन में अपने घरों और समारोह मे वैसे ही शरीर को अर्धनग्न दिखाने वाले अश्लीलता की हदों को पार करते हुए कपड़े पहन कर अपनी को प्रगतिशील और आधुनिक कहते हैं । ऐसे लोग भूल जाते हैं आधुनिकता विचारों में होनी चाहिए। ऐसे उल जुनून कपड़े पहन कर वह हास्य के पात्र ही बनते हैं। कई बार ऐसे लोग शर्मिंदगी के भी शिकार होते हैं, जिसे आजकल उप्स मोमेंट का नाम दिया गया है। ऐसी घटनाओं का रस लेकर बढ़ा चढ़ा कर एक दूसरे से वर्णन करते हैं, और फिर स्वयं भी वैसा ही काम करते हैं। उसमें भी भूल जाते हैं कि वह भी वैसे ही उप्स मोमेंट के शिकार होंगे और उनकी भी रस लेकर वैसे ही उनके पीछे चर्चा की जाएगी।
धान में प्रयोग करने आवश्यक हैं समय के अनुसार परिवर्तन भी होता है परंतु यह परिवर्तन शालीनता पूर्ण और सुविधाजनक वस्त्र के रूप में ही होना चाहिए। यह निर्णय हमें स्वयं लेना होगा हम यह हमारे बच्चे ऐसे परिधान पहने जिसे पहनकर भी सभ्य सुसंस्कृत और शालीन दिखें। वह भी अपने निर्धारित बजट के अनुसार ही हम लोग वस्त्र का चयन करें। किसी से प्रतियोगिता करने के लिए झूठी शान दिखाने के लिए अपने ऊपर अनावश्यक वित्तीय बोझ न डालें,और यही शिक्षा अपने बच्चों को भी दें।
स्वरचित
©®
निर्मला कर्ण
राँची,झारखण्ड
Punam verma
13-Jun-2023 08:42 AM
Very nice
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वानी
13-Jun-2023 06:49 AM
Satya vachan
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